भवरहित वीतरागी पुरुषनी वाणी! आत्माना
परमशांतरसने बतावनारी आ वाणी अपूर्व
छे...वीतरागी संतोनी वाणी परम अमृत छे...भवरोगनो
नाश करनार ए अमोघ औषध छे.
Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).
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