Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १प मुं
अंक १० मोे
श्रावण
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१७७
आत्मा झणझणी ऊठे छे
आत्मा ज आनंदनुं धाम छे, तेमां अंतर्मुख थये ज
सुख छे–
आवी वाणीना रणकार ज्यां काने पडे त्यां
आत्मार्थी जीवनो आत्मा झणझणी ऊठे छे के वाह! आ
भवरहित वीतरागी पुरुषनी वाणी! आत्माना
परमशांतरसने बतावनारी आ वाणी अपूर्व
छे...वीतरागी संतोनी वाणी परम अमृत छे...भवरोगनो
नाश करनार ए अमोघ औषध छे.