Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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दस लक्षणी पर्युषण पर्व
सोनगढमां दर वर्षनी जेम भादरवा सुद
पांचम ने बुधवारथी शरू करीने, भादरवा सुद १४
ने शुक्रवार सुधीना दस दिवसो दसलक्षणी धर्म
अर्थात् पर्युषणपर्व तरीके ऊजवाशे. आ दिवसो
दरमियान उत्तम क्षमादि धर्मो उपर पू. गुरुदेवना
खास प्रवचनो थशे.
‘आत्मधर्म’ ना वाचकोने
‘आत्मधर्म’ दरेक अंग्रेजी महिनानी आखर तारीखे प्रगट करवामां आवे छे, एटले ते आपने दरेक अंग्रेजी
महिनानी लगभग पांचमी तारीख सुधीमां मळी जशे, जो त्यारबाद आपने ‘आत्मधर्म’ न मळे तो ते अंगेनी
फरियाद करवी.
‘आत्मधर्म’ नी व्यवस्था के लवाजमने अंगे ‘आत्मधर्म’ कार्यालय–सोनगढना शीरनामे पत्रव्यवहार करवो.
‘आत्मधर्म’ नुं वार्षिक लवाजम रूा. चार लेवामां आवे छे.
सिद्धोना सुखनो स्वीकार
अहा! सिद्ध भगवंतो विषयातीत अतीन्द्रिय आत्मिक सुखने अनुभवे छे.
इन्द्रिय तरफना वलणमां के इन्द्रियविषयोमां जे जीव सुख माने छे ते जीव मुक्तिना विषयातीत अतीन्द्रिय
सुखने स्वीकारी शकतो नथी.
अने
जे जीव, ‘केवळी भगवंतोने इन्द्रियो वगर ज आत्मानुं अतीन्द्रिय सुख छे’–एम स्वीकारे छे ते जीव
इन्द्रियविषयोमां कदी सुख मानतो नथी.
इन्द्रियविषयनी सन्मुख रहीने सिद्धोना अतीन्द्रिय सुखनो वास्तविक स्वीकार थई शकतो नथी.
अतीन्द्रिय स्वभावनी सन्मुख थईने, अतीन्द्रिय सुखना अंशनो स्वाद चाखीने ज सिद्धोना अतीन्द्रिय सुखनो
वास्तविक स्वीकार थाय छे. अने ए रीते जेओ सिद्ध भगवंतोना अतीन्द्रिय सुखनो आनंदथी स्वीकार करे छे तेओ
आसन्नभव्य छे एटले के नीकट–मोक्षगामी छे.
प्रतिकूळ संयोग अने आत्मानी समजण
प्रश्नः– प्रतिकूळतानुं दुःख टळे तो आत्मानी समजण थाय?–ए वात बराबर छे?
उत्तमः– ना; प्रथम तो, प्रतिकूळताने दुःख मानवुं ते ज भूल छे. प्रतिकूळ संयोगनुं दुःख नथी पण मोहनुं दुःख
छे. ‘प्रतिकूळता तेटलुं दुःख’ एम नथी पण ‘जेटलो मोह तेटलुं दुःख’ एम सिद्धांत छे.
बीजुं–प्रतिकूळतानुं दुःख मटे तो आत्मानी समजण थाय–एम नहि. परंतु आत्मानी समजण करे तो दुःख
मटे, एटले गमे तेवी प्रतिकूळता होय तोपण तेमां ते दुःख न माने; आत्मानी समजण थतां बहारनी प्रतिकूळता तो
टळे के न पण टळे, परंतु ते प्रतिकूळताना प्रसंग वखतेय आत्माना अतीन्द्रिय सुखनुं आस्वादन (अमुक अंशे) वर्ते
ज छे, माटे प्रतिकूळताथी डरीने आत्मानी समजणना उद्यममां हताश थवुं ते योग्य नथी, परंतु गमे तेवी प्रतिकूळताथी
पण न डरतां, निर्भयपणे आत्मानी समजणनो ने अनुभवनो एकधारो उद्यम करवो ते ज दुःख मटवानो ने सुखी
थवानो उपाय छे.