Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 25

background image
द्वितीय श्रावणः २४८४ ः ३ः
आत्मधर्म
वर्ष पंदरमुं संपादक द्वि. श्रावण
अंक १० मो रामजी माणेकचंद दोशी २४८४
जयपुर–महिला संमेलनमां
गुरुदेवना आशीर्वाद
श्री सम्मेदशिखरजी वगेरे अनेक
तीर्थधामोनी यात्रा करीने पू. गुरुदेव
जयपुर नगरीमां पधार्या ते प्रसंगे चैत्र
१२ना रोज त्यां महिला संमेलन थयुं हतुं,
जेमां १२–१३ हजार बहेनोनी हाजरी
हती; तेओनी खास विनंतिथी पू. गुरुदेवे
लगभग दस मिनिट आशीर्वादरूप
प्रवचन कर्युं हतुं.. तेमां कह्युं हतुं केः–
स्त्रीनो देह के पुरुषनो देह ते तो पुद्गलनी रचना छे, अंदर आत्मा बधानो एक सरखो छे. स्त्रीनो आत्मा
पण पोताना आत्मानो सुधार करी शके छे. पूर्वे आत्मानुं भान करी–करीने अनेक स्त्रीओ एकावतारी थई गई छे, ने
अत्यारे पण एवी स्त्रीओ छे. सवार्थसिद्धिना देवो–के जेओ मनुष्य थईने सीधा मोक्ष पामवाना छे तेओने चोथी
भूमिका छे, अने स्त्रीओ पोताना आत्माना आनंदनुं स्वसंवेदन करीने देवथी पण ऊंची भूमिका (–पांचमुं गुणस्थान)
प्रगट करी शके छे. “अमे तो स्त्री छीए तेथी अमाराथी शुं धर्म थई शके”–एम न मानवुं. स्त्रीनो आत्मा पण पांचमा
गुणस्थान सुधी पहोंची शके छे अने देवोथी