Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय श्रावणः २४८४ः २१ः
वीरकुंवरनी बाल्यावस्थाना
बे प्रसंगो
(सोनगढ–जिनमंदिरना एक चित्रमां,
अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभुनी बाल्यावस्थाना
बे प्रसंगोनुं अति भाववाही आलेखन छे...
ते प्रसंगोनी कथा अहीं आपवामां आवी छे.)
(१)
चैत्र सुद तेरसे अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर भगवाननो जन्म थई गयो. अने इन्द्रादिदेवोए अति भक्तिपूर्वक
भगवानना जन्मकल्याणकनो महोत्सव ऊजव्यो...मेरु उपर जन्माभिषेक करीने, नगरीमां पाछा आवीने बालतीर्थंकर
मातापिताने सोंप्या...अने पछी पूजन तथा तांडव नृत्यादि करीने इन्द्रादि देवो स्वस्थानके पाछा गया..जतां जतां
इन्द्रमहाराज केटलाक देवोने त्यां मूकता गया अने आज्ञा करी केः हे देवो! तमे आ बालतीर्थंकर प्रभुने खेलाववा माटे
अहीं ज रहेजो..भक्तिपूर्वक तेमने खेलावजो..नाना बाळकनुं रूप धारण करीने तमे पण तेमनी साथे खेलजो..ने तेमनी
संभाळ राखजो..
एक दिवसे महेलमां उपला माळे भगवानना माता–पिता बिराजे छे, ने नीचेना माळे बाळ तीर्थंकर खेली
रह्या छे, एक देव तेमने खेलावी रह्या छे.
ते समये पार्श्वनाथ प्रभुना शासनमां दीक्षित संजय अने विजय नामना बे मुनिराज पृथ्वीने पावन
करता विचरी रह्या हता..तेओ चारणऋद्धिधारक महान संतो हता..जो के तेओ महान श्रुतधर हता, परंतु कोई
सूक्ष्म तत्त्व संबंधमां तेमने संदेह रहेतो हतो. गगनमां विचरता विचरता एक वार ते बंने मुनिवरो, सिद्धार्थ
महाराजाना महेल समीप आव्या; ते वखते नानकडा वर्द्धमानकुंवर देवनी पासे खेली रह्या हता..ए
बालतीर्थंकरनी मुद्रा नीहाळतां ज संजय अने विजय ए बंने मुनिवरोनो संदेह दूर थई गयो..अने तेमने श्रुतनी
विशेष निर्मळता प्रगट थई.. बालतीर्थंकरना निमित्ते पोतानी मतिनी निर्मळता थई तेथी ते मुनिवरोए
वर्द्धमानकुमारनुं “सन्मतिनाथः” एवुं नाम पाडयुं...ने प्रमोदथी तेओए कह्युं केः आ बाळक सन्मतिना नाथ
एटले केवळज्ञानना स्वामी थशे.
(२)
स्वर्गमां इन्द्र महाराजानी सभा भराणी छे...देवो अनेक प्रकारनी चर्चा करी रह्या छे; एवामां, भरतक्षेत्रमां
अत्यारे सौथी विशेष बळवान कोण छे...तेनी चर्चा चाली...अनेक देवोए पोतपोतानो अभिप्राय व्यक्त कर्यो...छेवटे
इन्द्र महाराजाए कह्युंः देवो! भरतक्षेत्रमां अत्यारे अंतिम तीर्थंकर श्री वर्द्धमानकुमार जन्मी चूकया छे, अने बालवय
होवा छतां तेओ सौथी विशेष बळवान छे. त्रण ज्ञानना धारक ए बालतीर्थंकरनुं बळ