Atmadharma magazine - Ank 177
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १७८
आश्चर्यकारी छे!–एम कहीने अनेक प्रकारे भगवानना बळ वगेरेनी प्रशंसा करी.
“एक नानकडा बाळकमां आटलुं बधुं बळ कई रीते होई शके!” एम संदेह थतां संगम नामनो एक देव
भगवानना बळनी परीक्षा करवा माटे उद्यमी थयो अने ज्यां अनेक बाळको साथे वीरकुमार खेली रह्या हता, त्यां
आव्यो..
देदीप्यमान राजकुमार वर्द्धमान, बाल्यावस्थाथी प्रेराईने बगीचामां अनेक नाना नाना राजकुमारोनी साथे
रमी रह्या छे...अने बगीचामां एक झाड उपर चडीने क्रीडा करवामां तत्पर छे...एटलामां तो–
फूं...फूं...फूं...करतो एक मोटो भयंकर साप आव्यो..अने बराबर ते ज झाडना थडमां नीचेथी उपर सुधी
लपेटाई गयो..ए भयानक सर्पने देखतां ज बीजा बाळको तो भयथी थरथर ध्रूजवा लाग्या..ने झाडनी डाळी उपरथी
नीचे जमीन पर कूदी कूदीने जेमतेम भाग्या. महान भय उपस्थित थतां महान पुरुष सिवाय बीजुं कोण टकी शके छे?
वर्द्धमानकुंवर तो निर्भयपणे खेली रह्या..एटलुं ज नहि पण लसलसती सो जीभवाळा ते भयंकर सर्पनी फेण उपर
चढीने तेमणे निर्भयपणे क्रीडा करी...जाणे के पोतानी माताना पलंग उपर ज खेलता होय एवी रीते निर्भयपणे तेमणे
ते सर्पनी फेणो उपर क्रीडा करी.
थोडीवारमां तो ए सर्प अद्दश्य थयो..ने तेने स्थाने एक देव प्रगट थईने भगवाननी स्तुति करवा
लाग्यो. स्वर्गमांथी भगवानना बळनी परीक्षा करवा माटे आवेल संगमदेव ज ए मोटा सर्पनुं रूप धारण करीने
परीक्षा करी रह्यो हतो..बाल्यावस्थामां पण भगवाननुं आवुं महान पराक्रम देखीने ते देव घणो ज हर्षित
थयो..अने भगवाननी स्तुति करी...तथा भगवाननी आवी महान वीरताथी आश्चर्य पामीने ते देवे तेमनुं “
महावीर” नाम पाडयुं.
आठ प्रकारना नियमथी
मोक्षमार्गनुं स्वरूप
मोक्षमार्गनी ज आ सूचना छे, एटले के आ ज मोक्षमार्ग छे ने–बीजो मोक्षमार्ग–नथी–एम आचार्यदेव कहे छे–
सम्यक्त्व ज्ञानसमेत चारित्र रागद्वेषविहीन जे,
ते होय छे निर्वाण मारग लब्धबुद्धि भव्यने. १०६.
(–पंचास्तिकाय)
जुओ, आ मोक्षमार्ग! सम्यक्त्व अने ज्ञानथी संयुक्त एवुं चारित्र–के जे रागद्वेषथी रहित होय ते, लब्धबुद्धि
भव्य जीवोने मोक्षनो मार्ग होय छे.
* सम्यक्त्व अने ज्ञानथी युक्त ज,–नहि के असम्यक्त्व अने अज्ञानथी युक्त.
* चारित्र ज,–नहि के अचारित्र,
* रागद्वेषरहित होय एवुं ज चारित्र–नहि के रागद्वेषसहित होय एवुं,
* मोक्षनो ज–भावतः नहि के बंधनो (भावतः एटले आशयने अनुसरीने)
* मार्ग ज–नहि के अमार्ग,