पण जो परना कर्ता थाय तो ते मिथ्याद्रष्टि ज थाय, एटले तेनुं ईश्वरपणुं ज न रहे. हुं तो ज्ञायकस्वरूप छुं,
परनो कर्ता के परनो स्वामी हुं नथी-एवुं आत्मभान करीने पछी तेमां एकाग्रतावडे पूर्ण ज्ञान-आनंद जे
जीवे प्रगट कर्यो ते जीवने ज ईश्वर कहेवामां आवे छे. अने अनंता जीवो ए रीते पोतानुं शुद्ध स्वरूप प्रगट
करी करीने ईश्वर थई गया छे-एटले के मोक्ष पामी गया छे. एवा अनंता जीवो ईश्वरपणे अत्यारे
सिद्धालयमां देह रहित बिराजी रह्या छे, तेओ कदी फरीने देह धारण करता नथी. आ आत्मा पण पोताना
ज्ञायक स्वभावने ओळखीने तेमां लीनताथी एवा ईश्वरपदने पामी शके छे. परंतु ईश्वरने जे जीव जगतना
कर्ता तरीके माने छे ते तो ईश्वरना शुद्धस्वरूपनो अनादर करे छे, ते ईश्वरने खरेखर मानतो ज नथी;
एटले ते तो नास्तिक जेवो मिथ्याद्रष्टि छे.
आत्मा कांई आ आत्मानो स्वामी नथी. अने आ आत्माना भावनो स्वामी आ आत्मा पोते ज छे, बीजुं
कोई आ आत्मानुं स्वामी नथी. जो आम न जाणे अने खरेखर भगवानने ज पोताना स्वामी मानी ल्ये
तो तेणे पोताना आत्माने पराधीन मान्यो, पोतानी जेम बधाय आत्माने पण पराधीन स्वभाववाळा
मान्या, एटले भगवानना आत्मने पण तेणे पराधीन मान्यो..तेथी तेणे भगवानने न ओळख्या ने
भगवाननी भक्ति करतां तेने न आवडी.
थया..मारो आत्मा पण आपना जेवो ज्ञायक स्वभावी ज छे-आम जे जीव भगवान जेवा पोताना आत्माने
ओळखे ते ज भगवाननो खरो भक्त छे, तेणे ज भगवानने ओळखीने भगवाननी भक्ति करी छे. अने
आवी परमार्थ भक्ति सहित भगवानना बहुमान उल्लास आवतां एम कहे के ‘हे नाथ! आप ज मारा
स्वामी छो, आपे ज मने आत्मा आप्यो छे..’ धर्मी आम बोले ते कांई मिथ्यात्व नथी, परंतु यथार्थ
विनयनो व्यवहार छे. धर्मात्माना अंतरमां अभिप्राय शुं छे तेने तो ओळखे नहि ने एकली भाषाने वळगे
के “ज्ञानी आम बोल्या ने ज्ञानीए आम कर्युं.”-तो ते बाह्यद्रष्टि जीव धर्मात्माने खरेखर ओळखतो ज
नथी; ते जड भाषाने अने शरीरने ज ओळखे छे पण ज्ञानीना चैतन्यभावने ते ओळखतो नथी.
रा..म..’ कहेतांकने लक्ष्मणना प्राण ऊडी गया! अने रामचंद्र ते लक्ष्मणना मडदाने छ महिना सुधी साथे
लईने फर्या..अनेक रीते तेने बोलावे के भाई! तुं केम बोलतो नथी? तुं केम माराथी रीसाणो छो!
जमवानो समय थाय त्यां तेने खवराववानी चेष्टा करे, तेना मोढामां कोळियो मूके..रात्रे पण तेने बाजुमां
राखीने सुवडावे ने तेना कानमां कहे के भाई, हवे तो बोल! अत्यारे हुं ने तुं एकला ज छीए माटे तारा
मननी जे वात होय ते कही दे...सवार पडे त्यां ए मडदाने नवरावे-धोवरावे, ने कहे के भाई! क्यां सुधी
सुईश! हवे तो जाग! आ सवार पडी, ने जिनेन्द्र भगवाननी पूजानो समय चाल्यो जाय छे..माटे झट
ऊठ!-आम अनेक प्रकारे चेष्टाओ करे ने लक्ष्मणना शरीरने खभे नांखीने साथे ने साथे फेरवे..छतां हराम
छे जो राम तेनी साथे जराय संबंध मानता होय तो! स्वभाव मात्र स्व-स्वामीसंबंध सिवाय बीजा कोई
साथे अंश मात्र संबंध मानता नथी. पण बहारथी जोनारो अज्ञानी जीव धर्मात्मानी आवी अंर्तद्रष्टिनुं
माप कई रीते काढशे? छ छ महिना सुधी उपर मुजबनी चेष्टा करे छे छतां ते वखते पण लक्ष्मण साथे के
लक्ष्मण प्रत्येना राग साथे स्व-स्वामीसंबंध रामचंद्रजीए मान्यो नथी, ते वखते पण पोताना ज्ञायक
स्वभावना आश्रये जे सम्यग्दर्शनादि वर्ते छे तेना स्वामीपणे परिणमी रह्या छे. धर्मात्माना