नथी के परने लीधे आत्मानी पर्याय नथी; तेमज आत्माने लीधे परनुं सत्पणुं के
परनी पर्याय नथी.
आत्मानुं स्वसंवेदन करवुं ते मुक्तिनो मार्ग छे.
प्रभुतामां परनी सत्ता ज नथी, तो पर तेने शुं करे? पण परने लीधे मारुं कंई थाय
ने मारे लीधे परनुं कंई थाय-एवी भ्रमणा जीवने अंतर्मुख थवा देती नथी, अने
अंतर्मुखता वगर आत्मशांतिनुं वेदन थतुं नथी ने बहिर्भावोमां ज ते भटके छे.
नास्ति छे, आवुं समजीने, परथी भिन्न एवा स्वमां अंतर्मुख थतां उपादान-
निमित्तना ने निश्चय-व्यवहारना बधाय खुलासा थई जाय छे, क्यांय निमित्ताधीन
बुद्धि के पराधीनबुद्धि रहेती नथी, स्वरूपनी अंतर्मुखतामां परम शांतरसरूप
अमृतनुं वेदन थाय छे.
हे आत्मार्थी बंधुओ! ..
पू. गुरुदेवे वहेवडावेली अमृतधारानुं पान करो..
.. ए अमृतरसना पानथी अमर पदनी प्राप्ति थशे.