Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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भादरवोः २४८४ः १३ः
सम्यक्त्वना
उपायसूचक प्रश्नोत्तर
(श्री प्रवचनसार गा. ८०ना प्रवचनोमांथी)
(वीर सं. २४८४ श्रावण)
प्रश्नः– जीवे अनादिकाळथी शुं प्राप्त नथी कर्युं?
उत्तरः– जीवे अनादिकाळथी सम्यग्दर्शन प्राप्त नथी कर्युं.
प्रश्नः– ते सम्यग्दर्शन केम थाय?
उत्तरः– अरिहंत भगवान जेवा पोताना शुद्धआत्माने जाणवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे.
प्रश्नः– ‘आत्माने जाणे तो ज अरिहंतने यथार्थपणे जाणे’–एम न कहेतां, ‘अरिहंतने जे जाणे ते पोताना
आत्माने जाणे’ एम केम कह्युं.
उत्तरः– वास्तविक निश्चयथी तो एम ज छे के जे पोताना आत्माने जाणे छे ते ज अरिहंत–सिद्ध वगेरेने
यथार्थपणे जाणे छे; परंतु अहीं आत्माने जाणवाना प्रयत्नमां जे जीव वर्ती रह्यो छे एवा जीवने प्राथमिक भूमिकामां
विकल्प वखते केवुं ध्येय होय छे ते बताव्युं छे; अने ए रीते पहेलां ध्येयनो निर्णय करीने पछी अंतर्मुख थईने पोताना
आत्माने तेवो ज जाणे छे, एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे. आ रीते सम्यग्दर्शनना प्राथमिक अभ्यासवाळा जीवनी वात
होवाथी, अने ते जीव अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायने लक्षमां लईने तेना द्वारा पोताना आत्मानो निश्चय करे छे तेथी,
एम कह्युं के ‘जे जीव अरहंतने जाणे छे ते पोताना आत्माने जाणे छे.’
प्रश्नः– अरिहंतने जाण्या वगर आत्मा जाणी शकाय के नहीं?
उत्तरः– ना; भगवान अरिहंतदेव सर्वज्ञ छे, ते सर्वज्ञना निर्णय वगर ज्ञानस्वभावी आत्मानो निर्णय थई
शकतो नथी.
प्रश्नः– अरिहंतदेव तो पर छे, तेनुं आपणे शुं काम छे?
उत्तरः– अरिहंतदेव पर छे, ए वात साची, पण आत्मानी पूर्णदशा तेमने प्रगटी गई छे एटले तेमनुं ज्ञान
थतां आ आत्माना पूर्णस्वभावनुं पण ज्ञान थाय छे, केमके निश्चयथी जेवो अरिहंतनो आत्मा छे तेवो ज आ आत्मा
छे, तेमां कांई फेर नथी. अरिहंतनो निर्णय कांई अरिहंतने माटे नथी करवो, पण पोताना ध्येयनो निर्णय करवा जतां
तेमां अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय आवी जाय छे. जेने अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय नथी तेने खरेखर पोताना ध्येयनो
ज निर्णय नथी, पोताना आत्मानो ज निर्णय नथी; एटले तो ते मिथ्याद्रष्टि ज छे.
प्रश्नः– अरिहंतने जाणतां आत्मानुं ज्ञान कई रीते थाय छे?
उत्तरः– सम्यक्त्वसन्मुखी जीवने पहेलां एवी विचारणा जागे छे के आत्मानी पूर्ण–ज्ञान–आनंद दशाने पामेलो
जीव केवो होय? एटले विचारदशाथी ते अरहंतदेवनुं स्वरूप ओळखे छे; ते स्वरूप ओळखतां ज तेने कुदेवादिनुं सेवन
तो छूटी गयुं छे, ज्ञानआनंदस्वरूपथी विपरीत एवा रागादि भावोमां आदरबुद्धि छूटीने, स्वरूपमां आदरबुद्धि थई छे,
अने ए रीते ज्ञानानंदस्वरूपनी आदरबुद्धिना जोरे विकल्प–भूमिकाथी जुदो पडीने, अतीन्द्रिय स्वभावनी सन्मुखताथी
पोताना आत्माने जाणे छे. आ रीते अंतर्मुख थईने जेणे आत्माने जाण्यो तेणे ज सर्वज्ञनी खरी स्तुति करी, एटले
तेणे ज केवळी भगवानने खरेखर ओळख्या. (जुओ, समयसार गा. ३१) अरिहंतना स्वरूपनी विचारधारावडे निज
स्वरूपनो निर्णय करीने जे अंतर्मुखस्वरूपमां झूकी गयो तेने आत्मानुं ज्ञान थयुं.–आ रीते अरिहंतने जाणतां आत्मानुं
ज्ञान थाय छे.
प्रश्नः– सम्यग्द्रष्टि देडकांने अरिहंतनो निर्णय कई रीते होय छे?