Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 27

background image
ः १४ः आत्मधर्मः १७९
उत्तरः– सम्यग्द्रष्टि देडकांने पण अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय जरूर थई गयो छे; ‘अरिहंत’ एवा चार
अक्षरनुं ज्ञान के भाषा तेने भले न हो, पण पोताना अंर्तवेदनमां अरिहंतना स्वरूपनो निर्णय पण तेने
आवी ज गयो छे. हुं ज्ञान छुं, राग के देह हुं नथी; अंतरमां आनंदनुं वेदन थाय छे ते उपादेय छे, रागनुं
वेदन ते हेय छे–आम ज्यां पोताना वेदनथी नक्की कर्युं त्यां ते देडकाने एम पण नक्की थई गयुं के आवा ज्ञान
ने आनंदनी पूर्णदशा खीली जाय ते ज मारे उपादेय छे; अरिहंतना स्वरूपथी विपरीत एवा रागादि मारे
उपादेय नथी. आ रीते अरिहंतनुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं तेना अभिप्रायमां आवी गयुं छे, ने तेनाथी विपरीत
अभिप्रायनो तेने अभाव छे.
प्रश्नः– अरिहंतना निर्णयमां ‘तत्त्वार्थश्रद्धान’ कई रीते आवी जाय छे?
उत्तरः– अरिहंत भगवानने पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगटी गया छे, रागादि सर्वथा छूटी गया छे; पहेलां
तेमने पण रागादि हता, पण पछी भेदज्ञानवडे शुद्ध आत्माने ज उपादेय जाणीने, अने रागादिने हेय समजीने,
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे तेमणे अरहंतपदने साध्युं;– जेणे अरिहंतना आवा स्वरूपनो निर्णय कर्यो तेनी
श्रद्धामां एम पण आवी गयुं के मारो जीवस्वभाव अरहंत भगवान जेवो छे, तेमने जे पूर्णज्ञानानंददशा प्रगटी
ते ज मारे उपादेय छे एटले के मोक्षतत्त्व ज उपादेय छे; तेमने जे रागादि छूटी गया ते मारे पण छोडवा जेवा छे
एटले आस्रव–बंधतत्त्वो हेय छे; मोक्षदशा प्रगट करवानो ने आस्रव–बंधना नाशनो उपाय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र छे. ते मारे करवा जेवा छे एटले के संवर–निर्जरा करवा जेवा छे;– आ प्रमाणे अरिहंतना निर्णयमां
तत्त्वार्थश्रद्धान पण समायेलुं ज छे.
प्रश्नः– पहेलां आत्माने जाणवो, के पहेलां अरिहंतने जाणवा?
उत्तरः– बेमांथी एकनुं यथार्थ ज्ञान करवा जतां बीजानुं ज्ञान पण थई ज जाय छे, केमके परमार्थे आत्मा अने
अरिहंतना स्वरूपमां कांई फेर नथी. आत्मानुं स्वरूप न जाणनार अरिहंतना स्वरूपने पण नथी जाणतो, अने
अरिहंतना वास्तविक स्वरूपने (द्रव्य–गुण–पर्यायथी) जाणनार पोताना आत्माने पण जरूर जाणे ज छे. आ रीते
अरिहंतना स्वरूपनुं ज्ञान अने पोताना आत्मानुं ज्ञान–ए बंनेनी संधि समजवी.
प्रश्नः– आत्मानी प्राप्तिनो उपाय शुं छे?
उत्तरः– आत्मअनुभूतिरूप सम्यग्दर्शनवडे, अनंतकाळमां पूर्वे नहि थयेली एवी आत्मप्राप्ति थाय छे.
प्रश्नः– ते शुद्धात्म अनुभूति माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तरः– पहेलां तो अरिहंतदेवना आत्माने द्रव्यथी, गुणथी ने पर्यायथी ओळखीने, तेवा ज स्वभाववाळा
पोताना आत्माने जाणवो, अने ए रीते आत्माने जाणीने द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदना विचार छोडीने, पर्यायने
अंतर्मुख करतां, विकल्पातीत एवी शुद्ध आत्मानी अनुभूति थाय छे, आ ज सम्यग्दर्शननी रीत छे.
प्रश्नः– कयो जीव सम्यग्दर्शनना आंगणे आव्यो कहेवाय?
उत्तरः– अरिहंत जेवा पोताना आत्माने जाणीने तेना मनननी धारामां अप्रतिहतपणे जे वर्ते छे ते जीव
सम्यग्दर्शनना आंगणे आव्यो कहेवाय.
प्रश्नः– आंगणे आव्या पछी अंदर प्रवेश कई रीते करवो?
उत्तरः– अरहंत भगवान जेवा पोताना जे स्वरूपनो निर्णय विचारधाराथी कर्यो छे, ते स्वरूपमां अंतर्मुख
थवाना वारंवार अतिद्रढ अभ्यासवडे, पर्यायने तेमां लीन (अभेद–एकाकार) करीने अनुभव करवो ते ज स्वभावमां
प्रवेशवानी रीत छे, ते अनुभवनी निर्विकल्प दशामां द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनो विचार पण नथी होतो, त्यां द्रव्य–
गुण–पर्यायनी अभेदताना सहज आनंदनुं वेदन होय छे.
प्रश्नः– सम्यग्दर्शनना आ ज उपायने ‘समयसार’ नी भाषामां कहेवो होय तो?
उत्तरः– समयसारना पहेला ज कळशमां–‘
स्वानुभूत्या चकासते’ एम कहीने शुद्धात्मानी प्राप्तिनो उपाय
बताव्यो छे. आत्मा पोतानी स्वानुभूतिथी ज प्रकाशमान छे, रागवडे तेनो अनुभव नथी थतो,