आवी ज गयो छे. हुं ज्ञान छुं, राग के देह हुं नथी; अंतरमां आनंदनुं वेदन थाय छे ते उपादेय छे, रागनुं
वेदन ते हेय छे–आम ज्यां पोताना वेदनथी नक्की कर्युं त्यां ते देडकाने एम पण नक्की थई गयुं के आवा ज्ञान
ने आनंदनी पूर्णदशा खीली जाय ते ज मारे उपादेय छे; अरिहंतना स्वरूपथी विपरीत एवा रागादि मारे
उपादेय नथी. आ रीते अरिहंतनुं स्वरूप जेवुं छे तेवुं तेना अभिप्रायमां आवी गयुं छे, ने तेनाथी विपरीत
अभिप्रायनो तेने अभाव छे.
उत्तरः– अरिहंत भगवानने पूर्ण ज्ञान–आनंद प्रगटी गया छे, रागादि सर्वथा छूटी गया छे; पहेलां
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे तेमणे अरहंतपदने साध्युं;– जेणे अरिहंतना आवा स्वरूपनो निर्णय कर्यो तेनी
श्रद्धामां एम पण आवी गयुं के मारो जीवस्वभाव अरहंत भगवान जेवो छे, तेमने जे पूर्णज्ञानानंददशा प्रगटी
ते ज मारे उपादेय छे एटले के मोक्षतत्त्व ज उपादेय छे; तेमने जे रागादि छूटी गया ते मारे पण छोडवा जेवा छे
एटले आस्रव–बंधतत्त्वो हेय छे; मोक्षदशा प्रगट करवानो ने आस्रव–बंधना नाशनो उपाय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र छे. ते मारे करवा जेवा छे एटले के संवर–निर्जरा करवा जेवा छे;– आ प्रमाणे अरिहंतना निर्णयमां
तत्त्वार्थश्रद्धान पण समायेलुं ज छे.
उत्तरः– बेमांथी एकनुं यथार्थ ज्ञान करवा जतां बीजानुं ज्ञान पण थई ज जाय छे, केमके परमार्थे आत्मा अने
अरिहंतना वास्तविक स्वरूपने (द्रव्य–गुण–पर्यायथी) जाणनार पोताना आत्माने पण जरूर जाणे ज छे. आ रीते
अरिहंतना स्वरूपनुं ज्ञान अने पोताना आत्मानुं ज्ञान–ए बंनेनी संधि समजवी.
उत्तरः– आत्मअनुभूतिरूप सम्यग्दर्शनवडे, अनंतकाळमां पूर्वे नहि थयेली एवी आत्मप्राप्ति थाय छे.
प्रश्नः– ते शुद्धात्म अनुभूति माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तरः– पहेलां तो अरिहंतदेवना आत्माने द्रव्यथी, गुणथी ने पर्यायथी ओळखीने, तेवा ज स्वभाववाळा
अंतर्मुख करतां, विकल्पातीत एवी शुद्ध आत्मानी अनुभूति थाय छे, आ ज सम्यग्दर्शननी रीत छे.
उत्तरः– अरिहंत जेवा पोताना आत्माने जाणीने तेना मनननी धारामां अप्रतिहतपणे जे वर्ते छे ते जीव
उत्तरः– अरहंत भगवान जेवा पोताना जे स्वरूपनो निर्णय विचारधाराथी कर्यो छे, ते स्वरूपमां अंतर्मुख
प्रवेशवानी रीत छे, ते अनुभवनी निर्विकल्प दशामां द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनो विचार पण नथी होतो, त्यां द्रव्य–
गुण–पर्यायनी अभेदताना सहज आनंदनुं वेदन होय छे.
उत्तरः– समयसारना पहेला ज कळशमां–‘