‘स्वानुभूति’ कहो, के ‘अरिहंत जेवा पोताना आत्मानुं ज्ञान’ कहो,–ए त्रणेनो एक ज भाव छे, ने ते ज
सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
उत्तरः– अंतर्मुख थईने शुद्ध आत्मानी अनुभूति करवी ते ज आगमनुं विधान छे, ते ज संतोनुं फरमान छे.
(पाप के पुण्य) छे ते बंधनो हेतु छे, माटे ज्ञानस्वरूप थवानुं एटले के शुद्धआत्मानी अनुभूति करवानुं ज आगममां
विधान छे, ते ज आगमनुं ने संतोनुं फरमान छे. जे जीव रागने कर्तव्य माने छे के मोक्षनुं साधन माने छे तेने तो हजी
आगमना विधाननी के संतोना फरमाननी ज खबर नथी.
उत्तरः– आस्रव–बंधरूप विकारथी रहित एवुं परिपूर्ण मोक्षतत्त्व जेणे प्रतीतमां लीधुं तेने विकाररहित एवो
मोक्षतत्त्वनी प्रतीत करनार सम्यग्द्रष्टि छे. खरेखरी मोक्षतत्त्वनी प्रतीत आत्मस्वभावनी सन्मुखताथी ज थाय छे;
आत्मस्वभावनी सन्मुखता वगर मोक्ष वगेरे तत्त्वोनी यथार्थप्रतीत थती नथी.
उत्तरः– अरे भाई! तारो आत्मा नानो नथी, अरिहंत भगवान जेवा ज सामर्थ्यवाळो मोटो तारो आत्मा छे;
समावी दे, माटे तारा आवा ज्ञान–सामर्थ्यनी प्रतीत करीने अंतर्मुख था; एम करवाथी अरिहंत जेवो ज तारो आत्मा
तने स्वानुभवथी जणाशे. ताराथी थई शके एवुं आ कार्य छे.
उत्तरः– विकल्पोने करवारूप क्रियानो तेमां अभाव होवाथी ते निष्क्रिय छे, अने पोताना स्वरूपनी प्रतीत
उत्तरः– जेवा अरिहंत परमात्मा छे तेवो ज परमार्थे मारो आत्मा छे–आवी परमार्थ द्रष्टिथी सम्यग्दर्शन प्रगट
उत्तरः– तेने एम निःशंकता थई जाय के मोहना नाशनो उपाय में मेळवी लीधो छे, हवे हुं अल्पकाळमां ज
जीवने अंदरथी एवो झणकार आवी जाय छे के बस, बस सिद्धपदनो मार्ग हाथ आवी गयो..संसारनो हवे छेडो आवी
गयो..अनादिना दुःखना दरियामांथी नीकळीने हवे सुखना समुद्रमां में प्रवेश कर्यो.
उत्तरः– हा; अंतरमां अतीन्द्रिय आनंदना आह्लादपूर्वक–स्वसंवेदनथी पोताने निःसंदेहपणे पोताना