Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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भादरवोः २४८४ः १पः
पण अंतर्मुख थईने स्वानुभव वडे ज ते अनुभवमां आवे छे.
अथवा–‘भूयत्थमस्सिदो खलु सम्मद्दिट्ठी हवई जीवो’–आमां सम्यग्दर्शननी रीत बतावतां कुंदकुंदस्वामी
स्पष्ट कहे छे के भूतार्थस्वभावनो आश्रय करनार जीव सम्यग्द्रष्टि छे. ‘भूतार्थस्वभावनो आश्रय’ कहो,
‘स्वानुभूति’ कहो, के ‘अरिहंत जेवा पोताना आत्मानुं ज्ञान’ कहो,–ए त्रणेनो एक ज भाव छे, ने ते ज
सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
प्रश्नः– आगमनुं विधान शुं छे? संतोनुं फरमान शुं छे?
उत्तरः– अंतर्मुख थईने शुद्ध आत्मानी अनुभूति करवी ते ज आगमनुं विधान छे, ते ज संतोनुं फरमान छे.
केमके आ ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वरूपे परिणमे ते ज मोक्षनो हेतु छे, ए सिवाय अन्य जे कांई
(पाप के पुण्य) छे ते बंधनो हेतु छे, माटे ज्ञानस्वरूप थवानुं एटले के शुद्धआत्मानी अनुभूति करवानुं ज आगममां
विधान छे, ते ज आगमनुं ने संतोनुं फरमान छे. जे जीव रागने कर्तव्य माने छे के मोक्षनुं साधन माने छे तेने तो हजी
आगमना विधाननी के संतोना फरमाननी ज खबर नथी.
प्रश्नः– मोक्ष तत्त्वनी प्रतीत करनार सम्यग्द्रष्टि छे–ए कई रीते?
उत्तरः– आस्रव–बंधरूप विकारथी रहित एवुं परिपूर्ण मोक्षतत्त्व जेणे प्रतीतमां लीधुं तेने विकाररहित एवो
शुद्ध आत्मस्वभाव प्रतीतमां आवी ज जाय छे, एटले तेने मिथ्यात्वनो छेद थईने सम्यग्दर्शन थाय छे; माटे
मोक्षतत्त्वनी प्रतीत करनार सम्यग्द्रष्टि छे. खरेखरी मोक्षतत्त्वनी प्रतीत आत्मस्वभावनी सन्मुखताथी ज थाय छे;
आत्मस्वभावनी सन्मुखता वगर मोक्ष वगेरे तत्त्वोनी यथार्थप्रतीत थती नथी.
अरिहंत देवनी ओळखाण कहो के मोक्ष तत्त्वनी प्रतीत कहो, ते ओळखाण के प्रतीत करवा जनारने
आत्मस्वभावमां अंतर्मुखता थईने सम्यग्दर्शन थाय छे. माटे अरिहंतनुं स्वरूप बराबर जाणवुं जोईए.
प्रश्नः– अमारुं भेजुं (मगज) नानुं, तेमां अरिहंत भगवाननी आवडी मोटी वात केम बेसे?
उत्तरः– अरे भाई! तारो आत्मा नानो नथी, अरिहंत भगवान जेवा ज सामर्थ्यवाळो मोटो तारो आत्मा छे;
तारा ज्ञाननुं भेजुं एटले के तारा ज्ञाननी ताकात एवडी मोटी छे के अरिहंत भगवानने पण ते पोतामां ज्ञेयपणे
समावी दे, माटे तारा आवा ज्ञान–सामर्थ्यनी प्रतीत करीने अंतर्मुख था; एम करवाथी अरिहंत जेवो ज तारो आत्मा
तने स्वानुभवथी जणाशे. ताराथी थई शके एवुं आ कार्य छे.
प्रश्नः– सम्यग्दर्शन सक्रिय छे के निष्क्रिय?
उत्तरः– विकल्पोने करवारूप क्रियानो तेमां अभाव होवाथी ते निष्क्रिय छे, अने पोताना स्वरूपनी प्रतीत
करवारूप क्रिया तेमां होवाथी ते सक्रिय छे.
प्रश्नः– मोहमल्लने शीघ्र जीतवानो उपाय शुं छे?
उत्तरः– जेवा अरिहंत परमात्मा छे तेवो ज परमार्थे मारो आत्मा छे–आवी परमार्थ द्रष्टिथी सम्यग्दर्शन प्रगट
करवुं ते ज मोहना नाशनो मूळ उपाय छे.
प्रश्नः– जेने पोताना आत्मामां मोहना नाशनो आवो उपाय प्रगटयो होय तेने शुं थाय?
उत्तरः– तेने एम निःशंकता थई जाय के मोहना नाशनो उपाय में मेळवी लीधो छे, हवे हुं अल्पकाळमां ज
मोहने निर्मूळ करी नांखीश. मोहना नाशनो उपाय एटले के सम्यग्दर्शन थतां ज आत्माना आनंदना वेदन सहित
जीवने अंदरथी एवो झणकार आवी जाय छे के बस, बस सिद्धपदनो मार्ग हाथ आवी गयो..संसारनो हवे छेडो आवी
गयो..अनादिना दुःखना दरियामांथी नीकळीने हवे सुखना समुद्रमां में प्रवेश कर्यो.
प्रश्नः– पोताना सम्यग्दर्शननी पोताने खबर पडे?
उत्तरः– हा; अंतरमां अतीन्द्रिय आनंदना आह्लादपूर्वक–स्वसंवेदनथी पोताने निःसंदेहपणे पोताना
सम्यग्दर्शननी खबर पडे छे.