Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १प मुं
अंक ११ मोे
भादरवो
वी. सं. २४८४
संपादक
रामजी माणेकचंद शाह
१७९
ज्ञानीनी चाहना
अमारो अतीन्द्रिय आनंद अमने प्राप्त थाओ, बीजुं कंई
जगतमां अमारे जोईतुं नथी.
बाह्य इन्द्रियविषयसंबंधी सुख अनंतकाळथी भोगव्या
छतां किंचित् तृप्ति के शांति न थई. पण आकुळता ने अतृप्ति
ज रही, एवा इन्द्रियविषयसंबंधी सुखोथी हवे अमने बस
थाओ...बस थाओ..हवे स्वप्नेय ते विषयोने अमे नथी
चाहता..हवे तो अमे इन्द्रियोथी पार, विषयोथी पार, अपूर्व
आत्मिक सुखनो स्वाद चाखीने ते अतीन्द्रियआनंदने ज
चाहीए छीए, ते अतीन्द्रिय आनंदनी पूर्णता सिवाय
जगतमां बीजुं कांई अमे नथी चाहता.