Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १८०
थती ज नथी. आ चैतन्य ज स्वपद छे ते ज तारुं शरण छे; पण तें कदी तारा चैतन्यनुं शरण लीधुं नथी, माटे
अरे जीव! तारा निर्भय चैतन्यपदने जाणीने तेमां निःशंकपणे एकाग्र था. परचीजो ने रागादि तो अपद छे–
अपद छे, आ शुद्ध चैतन्य ज तारुं स्वपद छे–स्वपद छे. धर्मी जाणे छे के जगतनी गमे तेवी प्रतिकूळता ते कांई
मने भयस्थान नथी. मारुं चैतन्यस्वरूप अभय छे. निशंकपणे चैतन्यमां हुं प्रवर्तुं छुं–तेमां मने कोई संयोगो
भय उपजाववा समर्थ नथी, मारा चैतन्यदुर्गमां परसंयोगोनो प्रवेश ज नथी, पछी भय कोनो? अज्ञानी बाह्य
संयोगमां शरण मानीने– निर्भयस्थान मानीने तेमां प्रवर्ते छे, पण ते तो खरेखर भयनुं स्थान छे, जेने
शरणभूत मान्या ते संयोगो एक क्षणमां खसी जशे...जे मातापिताने के पुत्रने शरण मान्या ते एक क्षणमां फू
थईने क्यांय ऊडी जशे...लक्ष्मी अने शरीर क्यांय चाल्या जशे...माटे तेमां क्यांय अभयस्थान नथी. जगतना
कोई पदार्थनो संयोग एवो ध्रुव नथी के जे शरणभूत थाय! अरे, संयोग तरफ वर्ततुं तारुं ज्ञान पण क्षणमां
पलटी जशे, तेमां पण तारुं शरण नथी. आत्मराम ज तने शरण छे, तेनी श्रद्धा–ज्ञान करीने तेमां रमणता
कर! ते ज अभयस्थान छे.
।। २९।।
हे नाथ! आवा अभयस्वरूप आत्मानी प्राप्तिनो उपाय शुं छे–एम हवे शिष्य पूछशे.
* * *
आतमराम अविनाशी आव्यो एकलो..
ज्ञान अने दरशन छे तारुं रूप जो..
बहिरभावो ते स्पर्शे नहीं आत्मने,
खरेखरो ए ज्ञायक वीर गणाय जो..
“आत्मधर्म” ना ग्राहकोने
* आपना हाथमां रहेलुं आ मासिक आ अंकनी साथे पंदर वर्ष पूरा करे
छे...ने आवता अंके तेनुं सोळमुं वर्ष शरू थशे.
* आ मासिकमां परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीना आत्महितकारी
अध्यात्म उपदेशनो मुख्यसार प्रसिद्ध करवामां आवे छे. अने ते उपरांत पू. गुरुदेवना
प्रतापे थती जैनधर्म–प्रभावनानी विगतो आपवामां आवे छे...सांसारिक झंझटोमां
आ मासिक कदी पडतुं नथी...हजारो जिज्ञासुओ होंसे होंसे आ मासिकनुं वांचन करे
छे...ने तेमां आवेला पू. गुरुदेवना उपदेशद्वारा शांति अने धर्मनी प्रेरणा मेळवे छे..
* आगामी १६मा वर्षमां परमपूज्य गुरुदेव संघसहित श्री
बाहुबलीभगवान, रत्नमय जिनबिंबो, कुंदकुंदप्रभुनी तपोभूमि वगेरे तीर्थोनी यात्रा
करवाना छे; तेनी तथा मुंबई शहेरना पंचकल्याणक वगेरेनी भक्तिभरपूर माहिती
माटे आप ‘आत्मधर्म’ ना नवा वर्षना ग्राहक बनो अने आपना संबंधी जनोने
पण ग्राहक बनावो.
* “आत्मधर्म” नुं वार्षिक लवाजम रूा. ४–०० (चार) छे.
* दीपावली पहेलां आपनुं लवाजम मोकली आपो.
लवाजम मोकलवानुं सरनामुंः–
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)