बाद पू. गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. ए सिद्धधामना
उपशांत वातावरणमां सिद्धभगवंतो प्रत्ये हृदयनी
उदार उर्मिओ गुरुदेवे व्यक्त करी हती. महावीर
भगवानना सिद्धगमन प्रसंगे ए सिद्धधामनुं
प्रवचन वांचतां जिज्ञासुओने आनंद थशे.
एवो छे के जाणे चारे कोर मुनिओ ध्यानमां बेठा होय! बे चक्रवर्ती, दस कामदेव अने साडात्रण करोड मुनिवरो अहींथी
मोक्ष पधार्या छे, तेओ अहींथी उपर लोकाग्रे सिद्धालयमां बिराजे छे. (–आम कहीने गुरुदेवे उपर नजर करीने, हाथ
वडे सिद्धालय बताव्युं; पछी उपरना सिद्धभगवंतोने जाणे के पोताना तेमज श्रोताओना हृदयमां उतारता होय तेम
कह्युंः–)
सिद्धभगवंतो अक्रिय–चैतन्यबिंब छे, तेमने शांतपरिणति थई गई छे, आपणा मस्तक उपर समश्रेणीए लोकना
उत्कृष्टस्थाने तेओ बिराजे छे. सिद्धभगवंतो लोकना अग्रेसर छे तेथी लोकना शिरे बिराजे छे. जो तेओ अग्रेसर न
होय तो लोकनी उपर केम बिराजे? जेम पाघडी के मुगटने लोको पोताना उपर शिर उपर धारण करे छे तेम
सिद्धभगवाननुं स्थान पण लोकना शिर उपर छे, तेओ जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे. साधकोए अनंत सिद्धभगवंतोने
पोताना शिर उपर राख्या छे...ध्येयरूपे हृदयमां स्थाप्या छे. आ रीते ‘सिद्ध’ भगवंतो ‘वर’ एटले के उत्कृष्ट ‘कूट’
एटले के शिखर छे.–आम सिद्धभगवानमां ‘सिद्धवरकूट’ नो भावार्थ ऊतार्यो. अवा सिद्धभगवंतोने ओळखीने
ध्येयरूपे पोताना आत्मामां स्थापवा–एटले के पोताना आत्माने ते सिद्धिना पंथे परिणमाववो ते सिद्धिधामनी
परमार्थ जात्रा छे.
कारणपरमात्माने ध्यावता हता..ने केवळज्ञान पामीने मोक्ष पामता हता. दरेक आत्मा पोते आवो कारणपरमात्मा छे.
ज्यारे अंतर्मुख थईने पोते पोतानुं ध्यान करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय छे. अंतरमां कारणपरमात्माने ध्यावी–ध्यावीने ज
अनंता जीवो सिद्ध थया छे ने थशे.