Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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जिननाथना मार्गे.. शाश्वतपुरीमां
हे जिननाथ! सद्ज्ञानरूपी नावमां आरोहण करी भवसागरने ओळंगी जईने,
तुं झडपथी शाश्वतपुरीए पहोंच्यो. हवे हुं जिननाथना ते मार्गे (– जे मार्गे जिननाथ
गया ते ज मार्गे) ते ज शाश्वतपुरीनां जाउं छुं; (कारणके) आ लोकमां उत्तमपुरुषोने
(ते मार्ग सिवाय) बीजुं शुं शरण छे?
(नियमसार कळशः२७४)
पावापुरी मुक्तिधामनी यात्रा
(संक्षिप्त संस्मरणो)
पू. गुरुदेव संघसहित फागण सुद एकमे सांजे पावापुरी पधार्या, अने तरत धर्मशाळामां बिराजमान खड्गासन
महावीर भगवाननी अद्भुत मुद्राना दर्शनथी प्रसन्न थया..बीजे दिवसे फागण सुद बीजे सवारमां पद्मसरोवरनी वच्चे
प्रभुना निर्वाणधामनी यात्राए पधार्या...गुरुदेव साथे बेनश्री–बेन तेमज संघना हजार जेटला यात्रिको भक्ति गातांगातां
जलमंदिरे पहोंच्या..वीरनंदन वीरप्रभुना चरणने भावथी भेटया...ने भक्तिथी अर्घ चडाव्यो.
पू. गुरुदेव अने चारे तरफ भक्तजनोथी जलमंदिर खीचोखीच भराई गयुं.. निर्वाणधाम नीरखीने गुरुदेवे कह्युंः
महावीर भगवान अहींथी मोक्ष पधार्या..अहींथी उपर भगवान बिराजे छे. एम कहीने पछी गुरुदेवे नीचेनी भक्ति
गवडावी–
आजे वीर प्रभुजी निर्वाणपदने पामीया रे..
श्री गौतम गणधरजी पाम्या केवळज्ञान..
सु नर आवे निर्वाणकल्याणकने ऊजववा रे..
अहा, जलमंदिरमां भक्ति वखते भक्तजनो भगवानने नीहाळवा उत्कंठित थई रह्या छे...ने टगरटगर नीहाळता
जाणे के गुरुदेवने पूछी रह्या छे के हे गुरुदेव! महावीर प्रभु अहींथी कई रीते–कया मार्गे– मुक्ति पधार्या? ते अमने बतावो.
वीर भगवानना पगले पगले मुक्तिमार्गे चालतां चालतां गुरुदेव भक्तोने बतावी रह्या छे केः
त्रीस वर्षे तप आदर्यां, लीधां केवळज्ञान;
अगणीत भव्य उगारीने, पाम्या पद निर्वाण.
भगवाने तो त्रीस वर्षे तप आदर्यां ने केवळज्ञान पाम्या, पछी अनेक भव्य जीवोने ऊगारीने अहींथी मोक्षधाम
सिधाव्या.. चालो, आपणे पण शीघ्र ए मार्गे जईए..
भावभीनां चित्ते गुरुदेव कहे छेः हे भगवान! आ बाळकोने केवळज्ञानना विरहमां मूकीने आप मोक्ष पधार्या.. परंतु
अमे आपनां बाळक.. आपना शासनने शोभावता शोभावता आपना पगले पगले अमे पण आपनी पासे चाल्या
आवीए छीए.
जलमंदिरमां गुरुदेवनी भक्ति पूरी थतां पू. बेनश्री बेनने पण निर्वाण महोत्सव संबंधी उल्लासभरी भक्ति करावी हती.
भगवानना मुक्तिधाममां गुरुदेवनुं चित्त भक्तिथी रंगाई जतुं हतुं..तेथी तेओ फरी फरीने भक्ति गवडावता ता;–
जाणे के भक्तिरूपी दोरी वडे भगवानना शासनने झुलावी रह्या होय एम गुरुदेव नीचेनी स्तुति गवडावता हता–
वीर प्रभुजी मोक्ष पधार्या...गौतम केवळज्ञान रे..
वीरजीनुं शासन झुले रे..
मोंघो मारग ज्यां मुक्ति तणो.. त्यां जीवोना जुथ ऊभराय रे..
वीरजीनुं शासन झुले रे..
भक्ति पछी गुरुदेवे अंदर जईने वीरप्रभुना पुनित चरणोनो अभिषेक कर्यो. बहार आवीने अति प्रसन्न भावथी
भक्तोने कह्युंः ‘आजे तो में भगवानना चरणनो अभिषेक कर्यो.’ ए वात सांभळीने सौ भक्तोए हर्षथी जयजयकार
कर्यो...ने पछी प्रभुचरणोनुं पूजन थयुं.. गुरुदेव पण जल–चंदनादिथी पूजन करतां हता..फळपूजामां ‘
मोक्षफलप्राप्तये फलं
स्वाहा’ आवतां गुरुदेवे पण श्रीफळ स्वाहा कर्युं.
आम घणा ज भावपूर्वक पावापुरीना जलमंदिरमां गुरुदेव सहित यात्रासंघे भक्ति–पूजन कर्यां...त्यारबाद “हे वीर
तुम्हारे द्वारे पर..” इत्यादि धून गातां गातां सौ धर्मशाळाए पाछा आव्या..ने वीरप्रभुना मुक्तिधाममां गुरुदेवे प्रवचनद्वारा
मुक्तिमार्ग देखाडयो.. (पावापुरीनुं ए प्रवचन आ अंकमां आप्युं छे.