Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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आसोः २४८४ः ३ः
स्व–उपयोग अने धर्म; निश्चयनय अने निर्विकल्प
आनंद; सम्यक्त्व सन्मुख जीवनी परिणतिनुं
जोर; साधकनी परिणति; इत्यादि संबंधमां
(जुदी जुदी चर्चा उपरथीः अधिक भादरवोः २४८१)
प्रश्नः– धर्मीना ज्ञाननो उपयोग पर तरफ होय?
उत्तरः– हा; साधकदशामां धर्मीना ज्ञाननो उपयोग पर तरफ पण होय छे.
प्रश्नः– ज्ञाननो उपयोग पर तरफ होय छतां धर्म थाय?
उत्तरः– हा; पर तरफ उपयोग वखते पण, धर्मीने सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक जेटलो वीतराग भाव थयो छे तेटलो
धर्म तो वर्ते ज छे; एवुं नथी के ज्यारे स्वमां उपयोग होय त्यारे ज धर्म होय ने ज्यारे परमां उपयोग होय त्यारे धर्म
होय ज नहि. पर तरफ उपयोग वखते पण धर्मीने सम्यग्दर्शन–रूप धर्म तो सळंगपणे वर्ते ज छे तेमज चारित्रनी
परिणतिमां जेटलो वीतरागी–स्थिरभाव प्रगटयो छे तेटलो धर्म पण त्यां वर्ते ज छे.
प्रश्नः– ज्ञानीनो उपयोग पण पर तरफ होय ने अज्ञानीनो उपयोग पण पर तरफ होय,–तेमां शुं फेर?
उत्तरः– तेमां घणो महान तफावत छेः सौथी पहेली वात ए छे के ज्ञानीने सम्यग्दर्शन वखते एक वार तो
विकल्प तूटीने उपयोग स्व तरफ वळी गयेलो छे, एटले भेदज्ञान थईने प्रमाणज्ञान थई गयुं छे; पछी हवे तेनो
उपयोग पर तरफ जाय त्यारे पण भेदज्ञान–प्रमाण तो साथे ने साथे वर्ते ज छे; ज्यारे अज्ञानी तो एकांत परने
ज जाणे छे, परथी भिन्न स्वतत्त्वनी तेने खबर ज नथी, एटले पर तरफ उपयोगथी परने जाणतां ते परनी
साथे ज ज्ञाननी एकता माने छे, एटले तेनुं ज्ञान ज खोटुं छे. ज्ञानीने जगतना गमे ते ज्ञेयने जाणती वखते
प्रमाणज्ञान साथे ज वर्ते छे एटले सम्यग्ज्ञाननुं परिणमन तेने सदा वर्त्या करे छे. आ रीते अज्ञानीने तो
एकलो पर तरफनो उपयोग अने अधर्म ज छे; ज्ञानीने पर तरफना उपयोग वखते साथे अंशे शुद्धतारूप धर्म
पण छे.
प्रश्नः– स्व तरफ उपयोग क्यारे होय?
उत्तरः– अज्ञानीने तो स्व तरफ उपयोग होतो ज नथी. बधाय ज्ञानीओने एक वार तो (निर्विकल्प
अनुभूति वखते) स्व तरफनो उपयोग थई ज गयो होय छे; त्यार पछी चोथा–पांचमा–छठ्ठा गुणस्थाने पर
तरफ उपयोग होय छे, चोथा–पांचमा गुणस्थाने क्यारेक क्यारेक उपयोग स्वमां थंभी जतां निर्विकल्प आनंदनी
विशिष्ट अनुभूति थाय छे. मुनिवरोने तो उपयोग वारंवार स्वमां वळ्‌या करे छे. एकसाथे अंतर्मुहूर्त करतां
वधारे लांबो काळ तेमनो उपयोग परमां रहेतो नथी. सातमा अने त्यांथी आगळना गुणस्थाने तो उपयोगनी
स्वमां ज एकाग्रता होय छे.
साधकनो उपयोग एक साथे लांबो काळ सुधी स्वमां टकी शकतो नथी; जो उपयोग स्वमां विशेष जामे तो
शुक्लध्याननी श्रेणी मांडीने तरत ज केवळज्ञान पामी जाय छे.
मुनिदशामां तो बहु थोडा थोडा वखतना अंतरे