Atmadharma magazine - Ank 180
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः ४ः आत्मधर्मः १८०
उपयोगमां स्व तरफ वळीने वारंवार निर्विकल्प आनंदनो अनुभव थया करे छे; ज्यारे चोथा–पांचमा गुणस्थाने ते
क्यारेक थाय छे; तेने विशेष अंतर पडे छे, अने कोईक वार तरत पण थई जाय छे.
प्रश्नः– सविकल्प दशामां निश्चयनय होय?
उत्तरः– निश्चयनयनो उपयोग शुद्ध आत्माने ज ध्येय बनावीने ज्यारे तेमां थंभी जाय छे त्यारे निर्विकल्पता
ज थई जाय छे, एटले खरेखर तो निश्चयनय वखते निर्विकल्प दशा ज होय छे.
–आम छतां, शुद्ध स्वभाव तरफ ढळता उपयोगने सविकल्प दशामां पण कोई कोई ठेकाणे निश्चयनय तरीके
छे.
अभेद द्रव्यनी अनुभूति तरफ जेनो झूकाव नथी,–त्यां सुधी जे पहोंची वळतो नथी, ते जीवना शुद्धस्वभाव
संबंधी सविकल्प चिंतनने निश्चयनय कही शकाय नहि,–उपचारथी पण न कहेवाय. तेने निश्चयनयनो विकल्प छे–मात्र
राग ज छे, पण निश्चय ‘नय’ तेने नथी.
जीवने शुद्ध नयनो–निश्चयनयनो ‘पक्ष’ पण पूर्वे कदी आव्यो नथी,–एम कहीने तेमां जे निश्चयनयना पक्षनी
पण अपूर्वता बतावी छे ते तो स्वभाव तरफ झूकी रहेला जीवनी वात छे, एकदम नीकटमां सम्यग्दर्शन पामवानी जेनी
तैयारी छे, ने ते माटे स्वभावने लक्षमां लईने ते तरफनुं जोर करी रह्यो छे,–एवा जीवनी ते दशाने पण अपूर्व गणी छे
–तेने निश्चयनयनो पक्ष गण्यो छे. पछी स्वभाव तरफना जोरने लीधे तरतमां ज तेनो विकल्प तूटीने अंदर उपयोग
थंभी जतां साक्षात् निश्चयनय थाय छे, ते वखते निर्विकल्पता छे. आ निश्चयनयना उपयोग वखते आत्माना आनंद
साथे ज्ञाननी एकाकारता थतां अद्भुत निर्विकल्प आनंदनी अनुभूति थाय छे...अहो...निर्विकल्प दशानो ते आनंद
विकल्पने गोचर नथी.
प्रश्नः– अनादिना अज्ञानी जीवने, सम्यग्दर्शन पाम्या पहेलां तो एकलो विकल्प ज होय ने?
उत्तरः– ना; एकलो विकल्प नथी. स्वभाव तरफ ढळी रहेला जीवने विकल्प होवा छतां ते ज वखते
आत्मस्वभावना महिमानुं लक्ष पण काम करे छे, ने ते लक्षना जोरे ज ते जीव आत्मा तरफ आगळ आगळ वधे छे;
कांई विकल्पना जोरथी आगळ नथी वधातुं.
अपूर्वभावे स्वभावने लक्षगत करीने, जेनी परिणति पहेलवहेली ज शुद्धस्वभावना अनुभव तरफ झूकी
रही छे, जेने सम्यग्दर्शन पामवानी तैयारी छे, एवा जीवनी खास परिणतिनुं अलौकिक वर्णन करतां अहीं पू.
गुरुदेवश्रीए कह्युं हतुं के, स्वभावने लक्षमां लईने तेना अनुभवनो प्रयत्न करी रहेला ते जीवने राग तो छे
पण तेनुं जोर राग उपर नथी जातुं, तेनुं जोर तो अंतरना स्वभाव तरफ ज जाय छे, एटले तेनी परिणति
स्वभाव तरफ झूकी जाय छे ने राग तूटीने निर्विकल्प अनुभव थाय छे. पहेलां राग हतो तेनुं कांई आ फळ
नथी, पण अंदर स्वभाव तरफनुं जोर हतुं तेनुं आ फळ छे.–जो के तेनुं आ फळ कहेवुं ते पण व्यवहार छे,
खरेखर तो ते सम्यग्दर्शन वखतनो प्रयत्न जुदो ज छे; परंतु अहीं सम्यग्दर्शन पहेलांनी दशामां जे विशेषता
छे ते बताववी छे; तेथी एम कह्युं छे.
राग तरफनुं जोर तूटवा मांडयुं ने स्वभाव तरफनुं जोर वधवा मांडयुं, त्यां (सविकल्प दशा होवा छतां) एकलो
राग ज काम नथी करतो, पण रागना अवलंबन वगरनो, स्वभाव तरफना जोरवाळो एक भाव पण त्यां काम करे छे,
अने तेना जोरे आगळ वधतो वधतो, पुरुषार्थनो कोई अपूर्व कडाको करीने निर्विकल्प आनंदना वेदन सहित
सम्यग्दर्शन पामी जाय छे.
एक वार आवो निर्विकल्प अनुभव थई गया पछी ज्ञानीने पाछो विकल्प पण आवे, अने विकल्प वखते
निश्चयनयनो उपयोग न होय; छतां ते वखते य ते