ज वर्ते छे ने क्रोधादिमां पोतापणे जरापण वर्ततो नथी,–ए रीते ज्ञानने अने क्रोधादिने भिन्नभिन्न जाणतो ज्ञानी
पोताना ज्ञानमां ज प्रवर्ततो थको कर्मोथी बंधातो नथी पण छूटतो ज जाय छे. आ रीते अंतरमां भेदज्ञान करवुं
ते ज मोक्षनो उपाय छे.
अंदरमां लक्ष करीने आ सूक्ष्म वात समजवा जेवी छे. भगवान महावीरना बोधने पात्र कोण? के सदैव सूक्ष्म
बोधनो अभिलाषी होय ते; भगवान महावीरनो बोध तो अंतरना सूक्ष्मस्वभावनो छे, ते सूक्ष्मस्वभाव
समजवानी अभिलाषा थवी जोईए. परनुं हुं करुं ने देहादिनां काम मारां–एवी स्थूळ–बुद्धि–अज्ञानबुद्धि तो
अनादिथी सेवी रह्यो छे, अहीं आचार्यदेव कहे छे के अरे भाई! परनुं काम आत्मा करे ए वात तो दूर रही,
परंतु रागादि भावो साथे चैतन्यस्वभावने एकमेक मानवो ते पण व्यभिचारीबुद्धि छे. जेम परस्त्री के
परपुरुषनो संग लौकिक सज्जनने शोभे नहि, अज्ञानपूर्वकनी सज्जनतामां पण ए न होय, तेम अहीं
ज्ञानपूर्वकनी सज्जनतामां एटले ज्ञानीधर्मात्मानी परिणतिमां रागादि परभावोनो संग होतो नथी एटले के ते
रागादि साथे कर्ताबुद्धि–एकत्वबुद्धि ज्ञानीने होती नथी. परभावो साथे एकताबुद्धि थाय तेने शास्त्रमां
व्यभिचारिणी बुद्धि कहे छे.
वळे नहि. पहेलां अंतरथी हकार लावीने स्वभावनो निर्णय करे तो पुरुषार्थनो वेग स्वभाव तरफ वळे. जेनी
रुचि होय ते तरफ वीर्यनो वेग वळे. जेने रागनी रुचि छे, राग ज मारुं कार्य एम माने छे तेना वीर्यनो वेग
राग तरफ वळेलो छे, पण रागथी खसीने अंतरना ज्ञानस्वभाव तरफ तेनो वेग वळतो नथी. अहा! आत्मा
तो ज्ञानभवनमात्र छे. सहज उदासीन छे एटले पर प्रत्ये झुकाव वगरनो सहजपणे ज्ञाता ज छे; पण अज्ञानी
तेवा पोताना सहज उदासीन स्वभावने छोडीने बहिर्मुख बुद्धिथी रागादिनो ज कर्ता थाय छे. अंतर्मुख थईने
ज्ञाता नथी रहेतो, पण बहिर्मुख थईने विकारनो कर्ता थाय छे–ए अज्ञानीनुं कार्य छे. अरे भाई! आवो मनुष्य
अवतार मळ्यो, तेमां आ समजीने आत्मानुं हित करवा जेवुं छे. आ अवतार तो अल्पकाळमां वींखाई जशे,
तेमां सत्समागमे जो आत्मानी दरकार न करी तो आ चोरासीना अवतारनो क्यांय आरो आवे तेम नथी.
अनंत अवतारमां तारा उपर चारगतिना दुःखो वीत्यां, हवे तेनाथी छूटवा माटे महात्माओनी आ शिखामण
छे के तारा आत्मानी समजण कर.
क्यांय शांति तने नथी मळी; माटे विचार कर के ते पुण्य–पाप आत्मानुं खरुं स्वरूप नथी; आत्मा ते पुण्य–पाप
जेटलो नथी, आत्मा तो पुण्य–पापथी पार चिदानंदस्वरूप छे.–एनुं एक वार लक्ष तो कर. चैतन्यनुं लक्ष करीने
तेमां नजर कर. तो अनंतकाळनी तारी दीनता टळी जाय.
चिदानंदस्वरूप साथे एकमेकपणे भासता नथी, एटले क्षणे क्षणे ज्ञानभावरूपे ज परिणमतो थको ते विकारथी
छूटतो ज जाय छे. अज्ञानी जीव विकारने ज देखे छे, विकारथी पार चैतन्यतत्त्व छे तेने तो ते अंर्तद्रष्टिथी
झांखतो पण नथी, तेने लक्षमां पण लेतो नथी ने विकारने ज तन्मयपणे पोतामां देखतो थको तेने ज ते करे छे,
एटले विकार करीकरीने ते संसारमां रखडे छे. आ रीते ज्ञानी अने अज्ञानीना कर्तव्यमां मोटुं अंतर छे, ने ते
कर्तव्यना फळमां मोक्ष अने संसार जेटलुं अंतर छे. ज्ञानीना ज्ञानकार्यनुं फळ मोक्ष छे, अज्ञानीना विकार कार्यनुं
फळ संसार छे. जडनुं कार्य तो ज्ञानी के अज्ञानी कोई करी शकतो ज नथी. आ रीते ज्ञानी तथा अज्ञानीनुं कार्य
अने तेनुं फळ समजाव्युं.