जराय कर्तव्य नथी. मोक्षेच्छुए साक्षात् वीतरागता ज कर्तव्य छे, केमके तेना वडे ज भवसागरने
तराय छे.
आनंदमां झूलतां झूलतां वच्चे जराक रागनो विकल्प ऊठतां आ शास्त्र लखाय छे. तेमा कहे छे के
साक्षात् वीतरागतारूप जे मोक्षमार्ग, ते मार्गनी प्रभावना अर्थे अमे कहीए छीए....अमे
मोक्षार्थी छीए.... रागने अमे नथी ईच्छता. अहा, केटला भद्रिक! केटला निर्मान! केटला
नीखालस!! बापु! रागनी होंस करशो नहि. अमारो उत्साह वीतरागी मोक्षमार्गमां ज छे,
रागमां अमारो उत्साह नथी, ने हे मोक्षार्थी श्रोताओ! तमे पण वीतरागी मोक्षमार्ग तरफ ज
तमारो उत्साह वाळजो, वच्चे राग आवे तेमां उत्साह करशो नहि.
प्रत्ये केटलो विनय होय! केटलुं बहुमान होय! रागमां वर्ततो होवा छतां जेने वीतरागी
पंचपरमेष्ठि भगवंतो प्रत्ये विनय अने बहुमाननो भाव नथी उल्लसतो तेने तो
वीतरागमार्गनी श्रद्धा पण थती नथी. वीतरागमार्गनी भावनावाळाने, साक्षात् वीतरागता न
थाय त्यां सुधी, वीतरागीपुरुषो प्रत्ये (पंचपरमेष्ठी वगेरे प्रत्ये) परमभक्ति–विनय–उत्साह–
बहुमाननो भाव जरूर आवे छे; छतांय तेमां जे राग छे ते कांई तात्पर्य नथी, ते मोक्षमार्ग
नथी; मोक्षमार्ग तो वीतरागभाव ज छे ए नियम छे, अने ए ज मोक्षेच्छुए कर्तव्य छे; एना
वडे ज ते भवसागरने तरीने परमानंदरूप मोक्षपदने पामे छे.
बहारना स्थानोमांथी के बीजे क्यांयथी तारो धर्म आवे तेम नथी.
आत्मस्वभावमां ज अंतमुर्ख थईने, तेमांथी सम्यग्दर्शनादि धर्म ले. जेम रत्नोनी खाणमांथी
रत्नो नीकळे छे तेम चैतन्यरत्ननी धु्रवखाण आत्मा छे, तेमां ऊंडो उतरीने ते धु्रवखाणमांथी
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नो काढ.