कारतकः २४८पः पः
–आ प्रमाणे वीतरागी संतोए ठेर ठेर वीतरागताना जयकार करीने तेने ज साक्षात् मोक्षमार्ग
तरीके प्रसिद्ध करी छे, अने तेने ज शास्त्रनुं तात्पर्य कह्युं छे.
बधाय तीर्थंकर भगवंतोए आ ज रीते मोक्षने साध्यो, अने आ ज रीते तेनो उपदेश कर्यो; माटे नक्की
थाय छे के आ ज निर्वाणनो मार्ग छे, बीजो कोई निर्वाणनो मार्ग नथी. आचार्यदेव कहे छे के, आ रीते
निर्वाणनो मार्ग नक्की थतां हवे बीजा प्रलापथी बस थाओ; मारी मति व्यवस्थित थई छे. अने आवो
मोक्षमार्ग दर्शावनारा भगवंतोने नमस्कार हो.
“अर्हंत सौ कर्मोतणो करी नाश ए ज विधिवडे;
उपदेश पण एम ज करी निर्वृत थया; नमुं तेमने.”
अहा, साक्षात् मोक्षमार्ग तरीके आ वीतरागताने ज जयवंत कहीने, अने तेने ज शास्त्रनुं तात्पर्य
कहीने आचार्यदेवे कमाल करी छे. साक्षात् मोक्षमार्ग अर्थात् सीधो मोक्षमार्ग, खरो मोक्षमार्ग तो
वीतरागता ज छे, एटले के मोक्षमार्गमां पहेलेथी छेल्ले सुधी (शरूआतथी पूर्णता सुधी) जे वीतरागता
छे ते ज मोक्षमार्ग छे; मोक्षमार्ग तरीके वीतरागता ज जयवंत वर्ते छे, रागनो तो मोक्षमार्गमांथी क्षय
थतो जाय छे.
जुओ, साक्षात् मोक्षमार्ग वीतरागता छे; शास्त्रनुं तात्पर्य वीतरागता छे; वीतरागतामां स्वभावनी
सन्मुखता छे ने परनी उपेक्षा छे, केम के परनी उपेक्षा करीने स्वभावमां वळ्या विना वीतरागता थती नथी.
वीतरागताने शास्त्रनुं तात्पर्य कह्युं तेना अर्थमां ए वात पण आवी ज गई के शास्त्रमां
क्यांय राग ते तात्पर्य नथी; केम के शास्त्रमां क्यांय वीतरागताने तात्पर्य कहे ने क्यांय वळी रागने तात्पर्य
कहे–एम परस्पर विरुद्ध कथन होय नहि. भले रागने क्यांय व्यवहारथी मोक्षमार्ग कह्यो के परंपरा मोक्षकारण
कह्युं छतां ते कथन वखते पण राग ते शास्त्रनुं तात्पर्य नथी, ते कथन वखते पण शास्त्रनुं तात्पर्य तो
वीतरागता ज छे. संतोए आखाय शास्त्रमां सळंगपणे वीतरागी तात्पर्य ज गूंथ्युं छे.
जुओ, आ बेसता वर्षनी बोणी अपाय छे! वीतरागी मोक्षमार्ग समजीने तेनी आराधना करवी
ते अपूर्व बोणी छे. जेणे आवा वीतरागी मार्गनी सम्यक् श्रद्धा करी तेना आत्मामां अपूर्व नवुं वर्ष बेठुं,
ने तेणे संतो पासेथी साची बोणी लीधी.
हे भव्य जीवो! वीतरागताने ज साक्षात् मोक्षमार्ग जाणीने तेनी आराधना करो.... वीतरागता केम
थाय? के स्वभावमां ढळतां वीतरागता थाय छे. अंर्तस्वभावमां लीन थतां वीतराग थईने जीव भवसागरने
तरे छे ने मोक्षने पामे छे, माटे मोक्षेच्छु जीवे, तरवाना कामी जीवे क्यांय पण जराय राग कर्तव्य नथी,
स्वभावमां लीनतावडे वीतरागता ज कर्तव्य छे. ते वीतरागता ज साक्षात् मोक्षमार्ग छे.....ते वीतरागता
जयवंत वर्तो.
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आचार्य भगवंतोना महिमापूर्वक गुरुदेव कहे छे केः वाह! जंगलमां बेठा बेठा संतोए
गजब काम कर्यां छे; वीतरागी मोक्षमार्गने जगत समक्ष खुल्लो मूकीने सत्यमार्ग प्रसिद्ध कर्यो छे.
अहा! आवो वीतरागमार्ग! एने ‘श्रद्धवानी रीत’ पण कोई अलौकिक छे. जो रागना एक
सूक्ष्म अंशनी पण रुचि रहे तो ते जीव वीतरागमार्गनी श्रद्धा नहि करी शके. चैतन्यस्वभावनी
सन्मुख थईने आनंदनी धारामां झूलता मुनिवरो वेगपूर्वक मोक्षमार्गमां परिणमता होवा छतां,
वच्चे जेटलो रागनो कण रही जाय छे तेटलो पण मोक्ष तरफनो वेग रोकाय छे, माटे मोक्षेच्छुए
साक्षात् वीतरागता ज कर्तव्य छे.