भक्तिना तेमज देह अने आत्मानी भिन्नताना एवा द्रढ संस्कार आत्मामां पाडवा के जेमां
अपूर्व रुचिथी आगळ वधीने आत्मिक सुखनी प्राप्ति थाय.....ने जन्ममरणनां दुःख छूटे.
जीवनमां निरंतर–दिनरात आवी ज भावना करवा जेवी छे.
देह–अंतके समयमें तुमको न भूल जाउं...
आतम स्वरूप अथवा आरधना विचारुं,
अरहंत–सिद्ध–साधु रटना यही लगाउं...
धर्मात्मा निकट हो चरचा धरम सुनावे,
वो सावधान रकखें गाफील न होने पाउं...
जीनेकी हो न वांछा....मरनेकी हो न ईच्छा,
परिवार मित्र जनसे में मोहको हटाउं.....
सम्यक्त्वका हो पालन...हो अंतमे समाधि,
‘शिवराम’ प्रार्थना यह जीवन सफल बनाउं....
दिनरात स्वामी मेरे मैं भावना ये भावुं.
तेने बदले तेमनुं आयुष्य एक करोड पूर्वनुं एम समजवुं. वीस तीर्थंकर पूजनमां नीचे मुजब
कह्युं छे;
तीन सबकी पूजा करुुं, मन वच तन धरी शीश.
आयु कोडि पूरव सब छाजे;
समवसरण शोभित जिनराजा,
भवजल तारनतरन जिहाजा.
सम्यक् रत्नत्रयनिधि दानी,
लोकालोकप्रकाशक ज्ञानी,
शत इन्द्रनी करि वंदित सोहे,
सुन नर पशु सबके मन मोहे