अंक २जो रामजी माणेकचंद दोशी २४८प
भावोमांथी शांतिनी सरिता वहेती नथी. ज्यां
पाणी भर्युं होय त्यांथी प्रवाह आवे. शांति अने
हितरूप जळ तो अंतरमां चैतन्य सरोवरमां भर्युं
छे, ते चैतन्य सरोवरमांथी ज (– एटले के तेमां
एकाग्र थवाथी ज) हित अने शांतिनी सरितानो
प्रवाह नीकळे छे; बीजी कोई रीते आत्मामां शांत
रसनी सरिता वहेती नथी.
आत्मस्वरूपमां एकाग्र थईने आत्मनिष्ठ रहेवुं ते
ज परम आवश्यक कार्य छे, एनाथी जे बाह्य छे ते
बधुं त्याज्य छे.