ः ४ः आत्मधर्मः १८१ः
भारतना पाटनगरमां पू. श्री कानजीस्वामी पधार्या ते प्रसंगे–
कोंग्रेसप्रमुख श्री ढेबरभाईनुं
स्वागत–प्रवचन
सं. २०१३ मां सम्मेदशिखर वगेरे
तीर्थधामोनी यात्रा करीने पाछा फरतां पू.
गुरुदेवश्री कानजीस्वामी संघ सहित
भारतना पाटनगर दिल्हीशहेरमां पधार्या
हता. त्यारे कोंग्रेसप्रमुख श्री ढेबरभाई
दिल्हीनी अनेकविध प्रवृत्तिओमां रोकायेल
होवा छतां लगभग दररोज पू. गुरुदेवना
प्रवचनोनो लाभ लेता. ता. ६–४–प७ ना
रोज तेमणे एक स्वागत–प्रवचन कर्युं हतुं;
तेनो मुख्यसार अहीं आपवामां आव्यो
छे.
भारत के ईस पाटनगरमे आप सबकी, और मेरी ओरसे मैंं महाराजश्री का सन्मान करने के लिये खडा
हुआ हुं.
महाराजश्री के प्रमुख शिष्य रामजीभाई नरम तबीयत होने से यहां नहीं आ सके है. वे मेरे एक बुलंद
साथी है; मैं जब सौराष्ट्र में गया तबसे, करीब ३० सालसे, रामजीभाई को मेरा बडा भाई समजता हुं.
हालांकि उनका मार्ग अलग रहा और मेरा अलग रहा, फिर भी हमारे दोनों के बीचमें प्रेम–आदर की कमी नहीं
हुई. उनके हृदय में महाराज के लिये जो प्रेम व आदर है उतना ही मेरे हृदयमें है. आप सबकी तरह,
महाराजश्री के परिवारका मैं भी एक अंगभूत हुं. महाराजश्री के अन्य शिष्यो (नानालालभाई वगेरे) है वे
भी मेरे बडे भाई है.
महाराजश्री की दुनिया एक अलग दुनिया है, और महाराजश्री मेरे साथीओंको एक पछी एक अलग
दुनियामें लेते जा रहे है. हमारा कार्यक्षेत्र भिन्न भिन्न होते हुए भी हमारे बीच कोई अंतरभेद नहीं.
महाराजश्री के जीवन के बार में आप लोगोंने बहुत सुना होगा. उनके बारेमें मैं ईतना ही कहूंगा कि
उनका जीवन एक सत्य द्रष्टा का जीवन है, और वे निर्भीक है. जिस चीज में विश्राम है उनका विश्वास है उसको
वे निडरतासे कह रहे है. अगर गुरु में ऐसी निर्भीकता न हो तो वे शिष्योंको बीचमें ही रूलादे–निर्भीकता के
विना सत्य मार्ग पर कैसे ले जाय?
महाराजश्री का चरित्र संपूर्ण सत्यका भान करानेवाला है; वे अपना जो संदेश सुना रहे है वह एक