तो एक ही बदला है कि–हम कोशीष करे उनके मार्ग पर चलनेकी! कोरी तारीफथी तेमने संतोष नहि,
थाय, पण तेओ आपणने जे सन्देश संभळावे छे ते समजवाथी ज तेमने संतोष थशे. ईसलिये
प्रवचनमें आप वारंवार कहेतें है कि “समझे?” “समजाय छे?” जेम गुरु प्रेमथी शिष्यने पढावतां
कहे के बेटा! समझा! समझा! वैसे आप भी प्रवचनमें बारबार श्रोताजनोंसे पूछते है कि “समझमें
आता है.......?”
कि तुम सेवक मीट जाओ, लेकिन महाराजश्री यह कहेते है कि, तुम समझो कि दुनियांका शत्रु अणुबम्ब नहीं है,
उसको उत्पन्न करनेंवाली व्यक्ति भी नहीं, लेकिन जो रागद्वेषकी भावना हे वही दुनियाका शत्रु है; रागद्वेषकी
प्रबल भावनाने ही एसे हथियारोंकी उत्पत्ति की है, ईसलिये हथियार शत्रु नहीं किन्तु राग–द्वेष ही शत्रु है
जिस विकारात्माक भूमि के उपर हम एक दूसरोकों शत्रु समझ रहे हे उसका नाश कैसे है यह महाराजश्री बतला
रहे है.
अपनी ईस नींवके द्वारा आज भारतवर्ष दुनियाको ऊंचा ऊठानेका प्रयत्न कर रहा है. ‘पंचशील’ के द्वारा
भारत आज निर्वैरबुद्धिका फेलाव करना चाहता है; महाराजश्री कहेते है कि रागद्वेष ही वैराबुद्धिका मूल है;
निर्वैरबुद्धि कैसे हो यह आप समझाते है. महाराजश्रीकी