Atmadharma magazine - Ank 182
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ६ः आत्मधर्मः १८२
नकारात्मक भूमिका नहीं है, लेकिन अनुभवात्मक भूमिका के उपर मार्ग दिखला रहे है.
मूझे २० सालसे महाराजश्री के सन्देश सुननेका सौभाग्य मिला है. मेरे साथीओं उनका सन्देश निरंतर
सुन रहै है. और रातदिन उनकी यह भावना रही कि मुझे भी महाराजश्री की और खींचना!
महाराज अपने सन्देशसे एक सत्यदर्शन समझानेकी कोशीष कर रहै है. महाराजश्री अपनी शिष्य मंडली
के साथ यात्राके लिये नीकले और यहांकी जनताको भी उनका सन्देश सुननेका लाभ मिला, ईस नगरीमें मैं
आप सबकी ओरसे महाराजश्रीका सन्मान करतां हूं सत्यका सन्देश सुनाकर वे हमको जागृत कर रहे है, और
हम महाराजश्री को विश्वास देते है कि हम भी ईसके लिये कोशीष करेंगे.
अंतमे एक वार फिर मैं सबकी ओरसे और मेरी ओरसे महाराजश्रीका स्वागत करतां हुं.
दिल्हीना ‘वीर सेवामंदिर’ मां
कोंग्रेसप्रमुख श्री ढेबरभाई
पू. गुरुदेवनी मुलाकाते
सं. २०१३ मां सम्मेदशीखर वगेरे
तीर्थधामोनी यात्रा करीने पाछा फरतां पू.
गुरुदेव संघ सहित दिल्ही पधार्या हता, अने
त्यां “वीर सेवामंदिर” मां ऊतर्या हता.
कोग्रेंसप्रमुख श्री ढेबरभाई पू. गुरुदेवना
प्रवचनोनो लाभ लेता, अने ते उपरांत ता.
६–४–प७ ना रोज सांजे सात वागे तेओ पू.
गुरुदेवनी खास मुलाकात लेवा माटे वीर
सेवामंदिरमां आव्या हता. कोग्रेसप्रमुख तरीके
नहि परंतु एक प्रेमी–जिज्ञासु सज्जन तरीके
आ मुलाकात दरमियान तेमणे पू. गुरुदेव साथे
लगभग एक कलाक धार्मिक वातचीत करी हती.
तेनो टूंक अहेवाल अहीं आपवामां आव्यो छे.
शरूआतमां श्री ढेबरभाईए रामजीभाईने याद कर्या हता के तेओ अहीं केम आवी शक्या नथी? श्री
रामजीभाईनी तबीयत बराबर नहि होवाथी तेओ दिल्ही आव्या न हता.
पू. गुरुदेवे ढेबरभाईने सोनगढनो परिचय आप्यो हतो. अनेक लोको बहारगामथी आवीने कायम माटे
सोनगढ रहे छे, मात्र तत्त्वज्ञाननो लाभ लेवाना हेतुथी ज त्यां आवीने रह्या छे. बे वखतना प्रवचनो उपरांत
आखो दिवस स्वाध्याय–चर्चा चाले छे. बहेनो माटे ब्रह्मचर्याश्रम छे; (अहीं ते आश्रमनो तथा बे बहेनोनो
केटलोक परिचय गुरुदेवे आप्यो हतो.) त्यार बाद गुरुदेवे कह्युं के अमारो विषय तो अध्यात्मनो छे. अंदर आ
देहथी भिन्न आत्मा शुं चीज छे? ते अमारो मुख्य विषय छे. जगत आ बहारना क्रियाकांडमां धर्म मानी बेठुं छे,
ते खरेखर धर्म नथी. ‘हुं कोण छुं’–आत्मा शुं चीज छे तेनी समजण उपर अमारुं मुख्य वजन छे.
ढेबरभाईः आत्म–धर्म उपर जोर देनार प्रथम श्रीमद् राजचंद्र थया...त्यारथी ए वात प्रकाशमां आवी.
गुरुदेवः हा, छेल्ला–छेल्ला हमणां श्रीमद् राजचंद्र