गांधीजीए तेमने गुरु स्वीकारेला....परंतु लोको तेमने बहु ओळखी न शक्या. तेमने जातिस्मरण ज्ञान पण
हतुं.....ढेबरभाई ए जातिस्मरण ज्ञान संबंधी विशेष पूछतां गुरुदेवे कह्युं; ज्ञानीनी अमुक निर्मळता (–उघाड)
छे; तो आ भव पहेलां पण ते क्यांक हतो तो खरोने! जेम अहीं घणा माणसोने दसी–वीस–पचास के तेथी पण
वधारे वर्ष पहेलांनी आ भवनी वात याद आवे छे तेम कोईने आ भव पहेलां जीव क्यां हतो तेनुं पण स्मरण
थाय छे.
गुरुदेवः हा, अत्यारे पण एवा जीवो छे. परंतु आत्मा शुं चीज छे तेनुं ज्ञान करवुं ए मुख्य चीज छे.
करवुं जोईए. आ देहमां रहेलो, देहथी जुदो ज्ञानस्वरूपमां आत्मा छे–तेनी ओळखाण विना आ जन्म मरण
जन्ममरण अटके नहि.
मुहपतिमां (स्थानकवासी संप्रदायमां) हता, पण एमांय मूळ वातमां घणो फेर होवाथी मने एम लाग्युं के हुं
आमां नहि रही शकुं; एटले सं. १९९१ मां तेमांथी परिवर्तन करी नाख्युं.
गुरुदेवः हा, ब्रह्मविद्या–आत्मविद्या ए ज मूळ चीज छे हिंदमां ए ब्रह्मविद्याना संस्कार छे, एवा बीजे
भरी छे तेम आत्मामां ज आनंद छे, ने आत्मामांथी ज ते प्रगट थाय छे– ए वातना संस्कार आजे हिंदमां ज
छे, बीजे क्यांय नथी. ब्रह्मचर्य पाळवुं ने आत्मज्ञान करवुं–ए बे वात उपर अमारुं विशेष वजन छे. श्रीमद्
राजचंदे कह्युं छे.
पात्रे आत्मिक ज्ञान;
पात्र थवा सेवो सदा,
ब्रह्मचर्य मतिमान.
करतां अल्पकाळमां ज तेनुं स्वसंवेदन थईने मुक्ति थया विना रहे नहि.
अरे जीव! एक वार बीजुं बधुं भूली जा.......संसार आखो भूली जा.....ने तारी स्वभाव शक्तिने संभाळ.
तारामां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी ताकात छे, तेनी सन्मुख थईने निज शक्तिनी संभाळ करतां ज तने
अभूतपूर्व आनंदनुं वेदन थशे अने संसारथी तारो बेडो पार थई जशे.