Atmadharma magazine - Ank 182
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ८ः आत्मधर्म १८२
“ प्रभो! मारां बंधन केम छूटे? ने
मने आनंदनुं वेदन कई रीते थाय?”
(ध्रांगध्रा शहेरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचनः
वीर सं. २४८४ चैत्र वद १२)
*
गुरु पासे जईने, विनयवंत थईने शिष्य पूछे छेः प्रभो! हुं बंधनमां छुं, हुं दुःखी छुं; ते बंधनथी ने
दुःखथी छूटीने मने आत्मानी शांति केम थाय?–मने आनंदनुं वेदन कई रीते थाय? बंधनथी आत्माने
छोडाववानुं ने आनंदनो अनुभव करवानुं साधन शुं? हे नाथ! मने एवो उपाय बतावो के जेथी मारो आत्मा
बंधनना दुःखथी छूटे...ने मने मारा आनंदनुं वेदन थाय.
जुओ, आ पात्र शिष्यनी जिज्ञासा! सुख अने तेना उपायने शिष्य स्वीकारे छे, तेमज पोताना
अपराधथी दुःख अने बंधन छे–तेने पण कबुले छे, अने ते बंधनथी छूटीने सुख प्राप्त करवानी झंखनाथी तेनो
उपाय पूछे छेः प्रभो! मारो आत्मा बंधनथी केम छूटे? ने मने आनंदनो अनुभव कई रीते थाय? आ रागना
वेदनमां मने मारो आनंद नथी भासतो, मने राग वगरना अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थवुं जोईए. प्रभो! ए
अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन केम थाय? तेनुं साधन बतावो.
आवुं पूछनार जिज्ञासु शिष्यने बंधनथी छूटवानो उपाय दर्शावतां आचार्यदेव कहे छे के–
जीव बंधबंने नियत निज निजलक्षणे छेदाय छे,
प्रज्ञाछीणीथकी छेदतां बंने जुदा पडी जाय छे.
(समयसार गा. २९४)
आत्मा अने बंध ए बंनेना लक्षण भिन्नभिन्न छेः तेमना भिन्नभिन्न लक्षणने ओळखीने, भेदज्ञानरूपी
छीणीवडे छेदतां ते बंने जुदा पडी जाय छे, एटले के आत्मा बंधनथी छूटी जाय छे ने तेने पोताना आनंदनुं
वेदन थाय छे. आ रीते भेदज्ञानरूपी भगवती प्रज्ञा ते ज बंधनथी छूटवानो ने आनंदना अनुभवनो
उपाय छे.
हे शिष्य! आत्मा अने रागादि भावो जाणे के एकमेक थई गया होय–एम अज्ञानने लीधे लागे छे,
परंतु खरेखर तेओ एक नथी; लक्षणभेदथी ते बंने जुदा छे. आत्मा तो सदाय चेतक छे– चेतनारो छे, ने
रागादि भावो ते चेतक नथी, पण चेतकवडे चेतावायोग्य (चेत्य) छे. आ रीते आत्मा चैतन्य लक्षणवाळो छे,
ने रागादिक तो बंधनुं लक्षण छे, ते कांई आत्मानुं लक्षण नथी, केमके रागादिक वगर पण चैतन्यस्वरूप
आत्मानो अनुभव थाय छे. आ रीते सूक्ष्म विचारवडे बंनेनी भिन्नता जाणीने तेमने जुदा करी शकाय छे. हे
शिष्य! अमे अमारा अनुभवथी कहीए छीए के आत्मा अने रागादिने भिन्नभिन्न ओळखीने, तेमनी संधि
वच्चे सावधानीपूर्वक प्रज्ञाछीणीने पटकतां तेओ जुदा पडी जाय छे, ते भगवती प्रज्ञाबंधनने छेदी नांखे छे,
ने राग वगरना अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव करावे छे. माटे हे शिष्य! तुं भगवती प्रज्ञानो एटले के
भेदज्ञाननो वारंवार अभ्यास कर.
आत्माना हितना उपायनी जेने धगश छे ने तेनी प्राप्तिना उपायने झंखतो श्रीगुरु पासे आव्यो छे