मागशरः २४८पः ९ः
गई.
देव केवा होय? – के सर्व बंधनथी छूटेला, जेने कोई पण प्रकारनुं रागनुं बंधन न होय, वीतराग होय,
सर्वज्ञ होय ने पूर्ण आनंदने पामेलो होय.
गुरु केवा होय? – जेणे भेदज्ञानवडे आत्मा अने रागादिने भिन्नभिन्न जाण्या होय, राग वगरना
आनंदनो अनुभव कर्यो होय, अने जेओ प्रज्ञाछीणीवडे बंधनने छेदीने सर्वज्ञपदप्राप्तिनो परम पुरुषार्थ करी
रह्या होय.
शास्त्र केवा होय? – के आत्माने बंधनथी छूटकारानो उपाय दर्शावनारी, आवा देव–गुरुनी वाणी ते
शास्त्र छे. ते शास्त्र भेदज्ञानवडे सर्व तरफथी रागने छेदवानुं बतावे छे, क्यांय पण रागथी लाभ थवानुं
बतावता नथी.
आवा देव–गुरु–शास्त्रने ओळखीने, तेमणे बतावेला मोक्षना उपायने भेदज्ञानवडे साधवो ते ज
मोक्षनो पंथ छे; ते ज बंधनथी छूटवानो ने आनंदना अनुभवनो उपाय छे.
–आवो उपाय कोण करे? रागमां ने बाह्य विषयोमां जेने आनंद न भासतो होय पण दुःख भासतुं
होय, बंधन भासतुं होय, त्रास लागतो होय, अने तेनाथी छूटीने राग वगरना आनंदने चाहतो होय ते जीव
आवो उपाय करे.
एवो शिष्य कहे छे के हे नाथ! हे स्वामी! मारे एक ज प्रयोजन छे के मारो आत्मा कोई पण रीते आ
बंधनथी छूटे ने आनंदने पामे, माटे तेनो उपाय मने बतावो, बीजुं कोई प्रयोजन मारे नथी. ‘काम एक
आत्मार्थनुं, बीजो नहीं मन रोग’–हे प्रभो! हुं मारा आत्मार्थने साधुं ए एक ज मारी अभिलाषा छे, बीजी
कोई अभिलाषा मारा मनमां नथी. हुं कोई पण भवने इच्छतो नथी, पुण्यने ईच्छतो नथी, स्वर्गना वैभव
इच्छतो नथी, संसारना कोई पण पदनी मने ईच्छा नथी, एक मात्र आत्मार्थनी ज ईच्छा छे, आत्मार्थी थईने
हुं मारा मोक्षने साधवा मांगुं छुं, माटे कृपा करीने मने तेनो उपाय बतावो.
–आ प्रमाणे शिष्य आत्मार्थी थईने मोक्षना उपायनी ज वात पूछे छे. जे जीव खरेखरो आत्मार्थी
थईने मोक्षना उपायने शोधे तेना अंतरमां मोक्षनो उपाय परिणम्या वगर रहे ज नहि, तेने मोक्षनो पंथ
मळे ज.
प्रथम जीवने पोताना अंतरमां ज एम भासवुं जोईए के मारामां जे आ रागनुं वेदन छे ते दुःख
छे–अशांति छे, मारा स्वभावनुं आवुं वेदन न होई शके, मारा स्वभावनुं वेदन तो शांत–आनंदरूप होय.
मारो आत्मा तो आनंद–स्वभावी छे तेथी तेनुं वेदन पण आनंदरूप ज होय. आम जेने रागमां दुःख लागे,
ने स्वभावनो आनंद लक्षमां आवे, ते जीव राग अने स्वभावनुं भेदज्ञान करीने पोताना स्वाभाविक आनंदनो
अनुभव करे. बंधनथी छूटवानो ने मोक्ष पामवानो आ ज पंथ छे.–
“मोक्ष कह्यो निज शुद्धता, ते पामे ते पंथ;
समजाव्यो संक्षेपमां, सकळ मार्ग निर्ग्रंथ.” (आत्मसिद्धि)
जेम लींडीपीपरमां चोसठ पोरी पूरी तीखासनी ताकात छे तेमांथी ते ज प्रगटे छे, तेम आत्मामां पूर्ण
आनंद ने सर्वज्ञता प्रगटे एवो स्वभाव छे, ते स्वभावनी श्रद्धा अने एकाग्रतावडे तेमांथी ज ते प्रगटे छे. पूर्ण
ज्ञान ने आनंद प्रगटी जाय तेनुं नाम मोक्ष छे; ने स्वभावनी श्रद्धा तथा एकाग्रता ते मोक्षनो पंथ छे. आव
मोक्षपंथनी आराधनावडे जीव बंधनथी छूटीने पोताना अतीन्द्रिय आनंदने अनुभवे छे.
आ रीते आचार्यदेवे आत्मार्थी शिष्यने बंधनथी छूटवानो ने आनंदना वेदननो उपाय बताव्यो.