Atmadharma magazine - Ank 182
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः आत्मधर्म १८२
* मोक्ष माटे कोनी सेवा करवी? *
* वीर सं. २४८४ जेठ सुद चोथः उमराळाना प्रवचनमांथी *
आ आत्मा पोते आनंदस्वरूप छे, ते परचीजोथी अत्यंत जुदो छे, परचीजोमां तेनो आनंद होई शके
नहि. पण पोताना आनंदस्वरूपने भूलीने, अने बहारमां आनंद मानीने जीव चार गतिमां भ्रमण करी रह्यो
छे. आनंद तो आत्मामां छे, पण ते आनंदनो अर्थी थईने तेनी शोध अंतरमां कदी करी नथी. अहीं शिष्य
आनंदनो अर्थी थईने श्रीगुरुने तेनी प्राप्तिनो उपाय पूछे छे के प्रभो! आत्माना आनंदनी प्राप्ति कई रीते
थाय? कोनी सेवा करवाथी आत्मा मुक्ति पामे? आवुं पूछनार मोक्षार्थी शिष्यने उत्तर आपतां आचार्यदेव आ
समयसारनी १७–१८ गाथामां कहे छे के–
ज्यम पुरुष कोई नृपतिने जाणे पछी श्रद्धा करे,
पछी यत्नथी धन–अर्थी ए अनुसरण नृपतिनुं करे;
जेम धननो अर्थी पुरुष राजाने सेवे छे, तेनुं द्रष्टांत आपीने कहे छे के–
जीवराज एम ज जाणवो, वळी श्रद्धवो पण ए रीते,
एनुं ज करवुं अनुसरण, पछी यत्नथी मोक्षार्थीए.
अहीं जीवने ‘राजा’ कह्यो, बधा पदार्थोमां श्रेष्ठपणे राजे छे–शोभे छे तेथी जीव राजा छे; मोक्ष देवानी
तेनामां ताकात छे. जेम राजानी सेवा करीने तेने रीझवतां ते अनेक प्रकारनी लक्ष्मी वगेरे आपे छे, तेम आ
चैतन्यराजानी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान ने तेनुं ज अनुसरण–ए रीते तेनी सेवा–आराधना करीने तेने रीझवतां ते
मोक्षलक्ष्मी आपे छे. माटे मोक्षार्थी जीवे मोक्षने माटे सर्व उद्यमथी आ चैतन्यराजानुं सेवन करवुं. एना सेवनथी
साध्यनी एटले के मोक्षनी सिद्धि थाय छे.
जुओ, आमां बे वातनी जवाबदारी छे–
एक तो जीव खरेखरो मोक्षार्थी होवो जोईए;
अने बीजुं, प्रयत्नपूर्वक आत्माने आराधे, एटले के पुरुषार्थपूर्वक आत्माने जाणे, तेनी श्रद्धा करे ने तेमां
ठरे. आ आत्मसिद्धिनो उपाय छे.
प्रथम आत्मानी श्रद्धा तथा ज्ञान कई रीते करवुं? ते कहे छेः आत्माने ज्ञान, राग वगेरे अनेक प्रकारना
भावो एक साथे अनुभवाता होवां छतां भेदज्ञानमां प्रवीणताथी मोक्षार्थी जीवे एम जाणवुं के आ बधा
भावोमां जे ज्ञानपणे अनुभवाय छे ते ज हुं छुं. आ रीते ज्ञानअनुभूतिस्वरूप आत्माने जाणीने तेनी निःशंक
श्रद्धा करवी के ‘आ ज हुं छुं’ आ रीते ज्ञानस्वरूप आत्मानी निःशंक श्रद्धा–ज्ञान करतां अन्य समस्त भावोथी
भेद थवाथी जीव निःशंकपणे पोताना ज्ञानस्वरूपमां ठरवा समर्थ थाय छे, एटले तेने स्वरूपनुं चारित्र उदय
पामे छे. आ रीते श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रवडे तेने साध्यरूप आत्मानी सिद्धि थाय छे.
पुरुषार्थपूर्वक आत्मानी आवी आराधना करवी ते मोक्षनो उपाय छे.
आबाळगोपाळ नाना–मोटा सौने ज्ञानस्वरूप आत्मा सदाकाळ अनुभवमां आवतो होवा छतां,
अज्ञानने लीधे ते पोताना ज्ञानने रागादि परभावो साथे एकमेकपणे अनुभवे छे, ‘रागादि छे ते हुं ज छुं’
एम ज्ञान साथे रागादिने एकमेकपणे श्रद्धे छे, ने रागादिमां ज निःशंकपणे वर्ते छे; रागादिथी जुदुं जे आ ज्ञान
छे ते ज हुं छुं–ए रीते राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान तेने नहि होवाथी, रागथी भिन्न आत्माने ते जाणतो नथी,
तेथी तेने तेनी श्रद्धा पण थती नथी; अने श्रद्धा–ज्ञान विना ठरे शेना? एटले चरित्र पण थतुं नथी.
माटे प्रथम तो सर्व पडखेथी बराबर ओळखाण करवी जोईए के आत्मा शुं चीज छे? ज्ञानस्वरूपे जे
अनुभवमां आवे छे ते ज हुं छुं, एम निःशंकपणे जाणीने तेमां ज पोतापणे वर्तवुं ते मोक्षनो उपाय छे. आ रीते
मोक्षार्थी जीवे मोक्ष माटे आत्मानी ज सेवा करवी, एटले के तेनुं ज्ञान–श्रद्धान करीने तेमां ठरवुं; एवो
आचार्यभगवाननो उपदेश छे.