Atmadharma magazine - Ank 183
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Reg. No. B. 4787
जेणे स्व साथे जोडी,
तेणे पर साथे तोडी.
जे आत्माने संसारबंधननो त्रास
लाग्यो होय ने जे पोताना आत्माने ते
बंधनथी छोडाववा मांगतो होय तेनी आ
वात छे. ते जीव आत्मा साथे संबंध जोडीने
जगत साथेनो संबंध तोडे छे. ते आ प्रमाणे–
हुं ज्ञायकस्वभावी आत्मा, जगतना
पदार्थोथी हुं अत्यंत जुदो; कोने हुं राजी करुं?
के कोनाथी हुं राजी थाउं? दुनिया दुनियामां,
ने हुं मारामां; हुं ज्ञान, ने पदार्थो ज्ञेय; ज्ञेयो
ज्ञेयपणे तेमना उत्पाद–व्यय–ध्रुवमां परिणमी
रह्यां छे, हुं मारा ज्ञानस्वभावमां ज स्वकीय
उत्पादव्यय–ध्रुवरूपे परिणमुं! आम निर्णय
करीने धर्मीजीव ज्ञानस्वभावने आश्रित ज
निर्मळभावे परिणमे छे. आ रीते
ज्ञानस्वभावमां उपयोगने जोडतां पर
साथेनो संबंध तूटी जाय छे. अने
एकत्वस्वभावनी भावनामां लीन एवो ते
आत्मा पर साथेनो संबंध अत्यंत तोडीने
सिद्धपदने पामे छे.
(प्रवचनसार गा. १०१ना
प्रवचनमांथी)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशक : हरिलाल देवचंद शेठ : आनंद प्री. प्रेस–भावनगर