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समयसारना संवर अधिकारमां आचार्यदेवे निरालंबी आकाशनो दाखलो आपीने आत्मानो
ज्ञानस्वभाव अद्भूत शैलिथी समजाव्यो छे. अहो! आखो लोक निरालंबी छे. चारे बाजु तेमज नीचे उपर
सर्वत्र अनंतअनंत अलोकाकाशनी मध्यमां ३४३ घनराजु प्रमाण आ लोक शाश्वत रहेलो छे. अनंतानंत जीव
पुद्गलो वगेरेथी ते सर्वत्र भरेलो छे. आ लोकने नीचे कोई टेको नथी के उपर कोई दोरडाथी ते लटकावेलो नथी,
तेमज कोईए तेने धारी राख्यो नथी, छतां ते लोक नीचे पडी जतो नथी. लोकनी नीचे तद्न खाली जग्या ज छे
छतां लोक नीचे ऊतरी जतो नथी, एमने एम निरालंबीपणे टकी रह्यो छे. जेम लोक आखोय निरालंबीपणे
एम ने एम टकी रह्यो छे, तेम लोकना बधाय पदार्थो निरालंबीपणे पोत पोताना स्वरूपमां रह्यां छे, कोई
भिन्न आधारनी अपेक्षा तेओने नथी. अहो! जुओ तो खरा आ वस्तु स्वभाव!
वळी समवसरणमां बिराजमान सर्वज्ञ परमात्माने नीचे रत्नमणिनुं दैवी सिंहासन होय पण
भगवाननो देह ते सिंहासनने अडतो नथी, भगवान तो सिंहासनथी चार आंगळ ऊंचे बिराजे छे एटले
निरालंबीपणे आकाशमां ज बिराजे छे.–
“ऊंचे चतुरांगुल जिन राजे
ईन्द्रो नरेन्द्रो मुनिराज पूजे
जेवुं निरालंबन आत्मतत्त्व
तेवो निरालंबन जिनरेह.”
भगवाननो आत्मा तो पोताना स्वभावना आधारे परिपूर्ण वीतरागी निरालंबी थई गयो, ने त्यां
शरीरनो स्वभाव पण निरालंबी थई गयो. कोई पण बाह्य पदार्थना अवलंबन वगर भगवाननो आत्मा
परिपूर्ण ज्ञान आनंदरूपे परिणमी रह्यो छे. बधाय आत्माओनो आवो निरालंबी स्वभाव छे. पण मूढ अज्ञानी
जीवोने बहारना अवलंबननी मिथ्याबुद्धि खसती नथी, ने आत्मानुं अवलंबन तेओ लेता नथी. संतो समजावे
छे के हे जीव! पोते ज पोताना धर्मनो आधार थाय एवी तारा आत्मानी शक्ति छे, माटे तुं तारा आत्मानुं ज
अवलंबन ले....ने बीजाना अवलंबननी बुद्धि छोड. जेम आकाशने रहेवा माटे बीजा कोईनो आधार नथी तेम
तारा आत्माने निजधर्म माटे बीजा कोईनुं अवलंबन नथी.
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जेनो जे आधार होय तेनाथी ते अभिन्न होय, भिन्न न होय. जो वस्तुमां पोतानो आधार थवानी
शक्ति न होय ने भिन्न आधार होय तो ‘अनवस्था दोष’ आवे,–आधारनी परंपरा क्यांय अटके नहि. जेमके–
कोई एम कहे के–आत्मानो आधार आ शरीर;
तो शरीरनो आधार कोण? – मकान;
मकाननो आधार? – आ जंबुद्वीप;
जंबुद्वीपनो आधार? – मध्य लोक;
मध्य लोकनो आधार? – लोक;
ने लोकनो आधार? – अलोक.
तो अलोकनो आधार कोण? –
अलोकथी तो मोटुं बीजुं कोई नथी के जेने अलोकनो आधार कही शकाय, माटे अलोकनो आधार अलोक
ज छे, बीजो कोई भिन्न आधार नथी, तो पछी अलोकनी जेम जगतना बधाय पदार्थोने पण पोत पोतानो ज
आधार छे, परनो आधार नथी. आकाशनो दाखलो आपीने भेदज्ञाननी अद्भुत रीत आचार्यदेवे समजावी
छे....ज्यारे एकला आकाशने ज लक्षमां लईने तेना आधारनो विचार करवामां आवे त्यारे आकाशने बीजा
कोई द्रव्यनो आधार कही शकातो नथी, एटले कोई भिन्न आधार लक्षमां आवतो नथी, एक आकाश ज
आकाशमां ज छे–एम बराबर समजाय छे, ने एवुं समजनारने पर साथे आधार आधेयपणुं भासतुं नथी.
तेम एकला ज्ञानस्वरूपने लक्षमां लईने तेना आधारनो विचार करवामां आवे त्यारे ज्ञानथी भिन्न अन्य कोई
द्रव्यनो आधार देखातो नथी, एक ज्ञान ज पोते ज्ञानमां ज छे–एम बराबर समजाय छे, अने एवुं
समजनारने पोताना ज्ञानस्वभावथी भिन्न अन्य कोई पदार्थो साथे पोतानुं आधारआधेयपणुं भासतुं नथी.
आवुं अपूर्व भेदज्ञान थतां पोते पोताना ज्ञानस्वभावना आधारे ज्ञानरूपे ज परिणमे छे, ने रागद्वेषमोहनी
उत्पत्ति थती नथी. –आनुं नाम संवर छे, ने ए ज सिद्धिनो उपाय छे.