Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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महाः २४८पः १३ः
श्रुतज्ञानोपयोगरूप परिणमे छे. केवळज्ञानी केवा होय, मुनि केवा होय, सम्यग्द्रष्टि केवा होय, साधक केवा होय,
बाधक केवा होय, जीव शुं, अजीव शुं, उपादेयतत्त्वो कया, हेय तत्त्वो कया,–इत्यादि बधुंय आगमवडे सिद्ध
होवाथी आगमचक्षुवडे मोक्षमार्गी मुनिवरो ते सर्वने जाणे छे. आ रीते आगमचक्षुथी सर्व पदार्थने जाणीने
पोताना श्रुतज्ञानने ज्ञानस्वभावमां ज परिणमावता थका मुनिवरो मोक्षमार्गने साधे छे. सम्यग्द्रष्टिने चोथा
गुणस्थाने पण भावश्रुतज्ञानरूप आगमचक्षु ऊघडी गयां छे. आ जड आंखोमां एवी ताकात नथी के पदार्थोना
स्वरूपने देखे; आगमरूपी आंखोमां ज एवी ताकात छे के सर्वपदार्थोना स्वरूपने जाणे. मोक्षमार्गी मुनिवरो
आवा आगमचक्षु वडे, सर्वतःचक्षु एवा सर्वज्ञपदने साधे छे.
एवा सर्वज्ञचक्षुवंत श्री भगवंतो, अने तेना साधक आगमचक्षुवंत श्री मुनिवरो अमारां
ज्ञानचक्षुने खोलो.
अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानांजनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलिंत येन तस्मै श्रीगुरबे नमः।।
गण्या गणाय नहि
पण
अनुभवमां समाय
‘सवार्थ सिद्धि’ ते उत्कृष्ट देवलोक छे, त्यां
असंख्य देवो छे, तेओ बधा सम्यद्रष्टि छे तेओनुं
आयुष्य ३३ सागरोपम (असंख्य अबजोवर्ष) छे
तथा तेओ एकावतारी छे; ते बधाय देवो भेगा
थईने असंख्य वर्षो सुधी अतूटपणे गण्या करे तो
पण आत्मानी शक्तिनो पार न आवे–एवी
अनंतशक्तिनो धणी आ दरेक आत्मा छे. ते
सम्यग्द्रष्टि देवोए अनंत शक्तिसंपन्न आत्माना
आनंदनो स्वाद स्व–संवेदनथी चाखी लीधो छे.
विकल्पद्वारा गणतरीथी आत्मानी शक्तिनो पार
नथी पमातो, पण ज्ञानने, अंतरमां लीन करतां
क्षणमात्रमां आत्मानी सर्वशक्तिनो पार पामी
जवाय छे. आत्माना गुणो, गण्या गणाय नहि
पण अनुभवमां समाय, ने ज्ञानमां जणाय.