Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः १८४
प्रश्नः आ जाणीने मुमुक्षुओए शुं करवुं?
उत्तरः– मुमुक्षुओए आगम अनुरूप चक्षुवडे बधुंय देखवुं अर्थात् आगम अनुसार समस्त
पदार्थोने यथार्थपणे जाणीने स्वपरनुं भेदज्ञान करवुं, अने स्व–परने भिन्न जाणीने ज्ञानानंदस्वरूप एवा
स्वतत्त्वमां एकाग्र रहेवुं आ सिद्धपदप्राप्तिनो उपाय छे, ने आ ज आगमनी आज्ञा छे. आ ज मुमुक्षुओनुं
कर्तव्य छे.
प्रश्नः– जे जीव रागथी लाभ माने छे ते केवो छे?
उतरः– रागथी लाभ माननार जीव ईंद्रियचक्षुवाळो ज छे; अतीन्द्रिय आत्मतत्त्वने जोवा माटे ते अंध
छे; तेना अतीन्द्रियचक्षु खुल्यां नथी, पण रागमां लीनताने लीधे बीडाई गयां छे.
देखतो थको ते ज्ञेयनिष्ठ ज वर्ते छे, पण ज्ञानचक्षुने अंतरमां वाळीने ज्ञानतत्त्वने ते देखतो नथी; तेथी ते पण
ज्ञानतत्त्वने देखवा माटे अंध छे. ज्ञेयोथी भिन्न एवा ज्ञानतत्त्वने नहि देखतो होवाथी तेने शुद्धात्मानुं संवेदन
थतुं नथी.
प्रश्नः– शुद्धआत्माना संवेदनथी शुं साध्य छे?
उत्तरः– शुद्धआत्माना संवेदनथी सिद्धपद साध्य छे; ते सिद्धपदमां ज्ञानचक्षुओ परिपूर्ण खीली गया
होवाथी सर्वत चक्षुपणुं छे....चैतन्यना असंख्यप्रदेशे केवळज्ञानरूपी चक्षु उघडी गयां छे.
प्रश्नः– ईंद्रियचक्षु वडे शुं साध्य छे?
उत्तरः– इंद्रियचक्षुवडे संसारभ्रमण साध्य छे, तेनाथी सिद्धपद संधातुं नथी, केम के इंद्रियचक्षुवडे आत्मा
देखातो नथी, अने परथी भिन्न आत्माने नहि देखतो थको ते ईंद्रियचक्षुवाळो जीव परद्रव्यमां ज प्रवर्ते छे, ने
परद्रव्यप्रवृत्तिनुं फळ संसार ज छे.
प्रश्नः– तो आवा पराधीन इंद्रियचक्षुथी छुटीने स्वाधीन सर्वतःचक्षुपणुं प्रगट करवा अमारे शुं करवुं?
उत्तरः– प्रथम तो गुरुगमे आगमचक्षुवडे–एटले के अंतर्मुख भावश्रुतना अवलंबन वडे, स्व अने परने
अत्यंत भिन्न जाणीने मोहने भेदी नांखवो. ए रीते ज्ञान अने ज्ञेयनो विभाग करीने ज्ञाननिष्ठ ज रहेवुं. आ
रीते आगमचक्षुवडे ज्ञाननिष्ठपणे शुद्धात्माना संवेदनमां रहेतां इंद्रियोनुं अवलंबन छूटी जाय छे ने अतीन्द्रिय
एवुं सर्वतःचक्षुपणुं प्रगटी जाय छे.
प्रश्नः– आगमचक्षु कोने होय छे?
उत्तरः– आगम एटले के भावश्रुत द्वारा स्व–परनुं भेदज्ञान करीने, ज्ञानस्वरूप स्वतत्त्वमां एकग्रतावडे
सिद्धपदने साधता होवाथी मोक्षमार्गी मुनिवरोने ‘आगमचक्षु’ कह्या छे. जो के सम्यग्द्रष्टि–भेदज्ञानी धर्मात्माने
पण भावश्रुत प्रगटयुं होवाथी ‘आगमचक्षु’ ऊघडी गयां छे, परंतु अहीं मोक्षमार्गमां मुनिवरोनी मुख्यता छे.
मुनिराज आगमचक्षु ने सौ भूत इंद्रियचक्षु छे,
छे देव अवधिचक्षु ने सर्वचक्षु सिद्ध छे. २३४.
प्रश्नः– आगम शुं छे? अने तेनी आज्ञा शुं छे?
उत्तरः– सर्वतःचक्षु एवा भगवान सर्वज्ञपरमात्माए प्रत्यक्ष जाणीने कहेलुं समस्त पदार्थोनुं स्वरूप ते
आगम छे ते आगम स्व–परनो विभाग देखाडनारा छे, अने स्व–सन्मुख थवानी तेनी आज्ञा छे.
प्रश्नः– जेने आगमनुं ज्ञान नथी ते जीवो केवा छे?
उत्तरः– आगमचक्षु वगरना अज्ञानी जीवोने स्व–परनुं भेदज्ञान नथी, परथी भिन्न अने विकारथी पण
भिन्न एवा परम ज्ञानस्वभावी आत्माने तेओ जाणता नथी, एटले स्व–पर एकत्वबुद्धिना मोहथी तेओ
परद्रव्यमां ज प्रवर्ते छे; तेओ मात्र इंन्द्रियसुखथी संयोगी परद्रव्योने ज जोनारा छे, पण ज्ञानचक्षुने अंतरमां
वाळीने–अंर्तद्रष्टि करीने–शुद्धआत्मतत्त्वने तेओ देखता नथी. आ रीते आगमचक्षु वगरना जीवो अज्ञानी छे,
मोहांध छे.
प्रश्नः– आगमचक्षुवाळा जीवो केवा छे?
उत्तरः– जेमना आगमचक्षु खुली गया छे एवा मोक्षमार्गी मुनिवरो आगमअनुसार स्पष्ट तर्कणाथी
एटले के भावश्रुतज्ञानथी समस्त पदार्थोने जाणता थका,