महाः २४८पः ११ः
मोक्षमार्गी मुनिवरोना चक्षु
(प्रवचनसार गाथा २३४–३प नां प्रवचनोमांथी)
प्रश्नः– सर्वज्ञपरमात्मा केवा छे?
उत्तरः– सर्वज्ञपरमात्माने ज्ञानचक्षु परिपूर्ण खीली गयां छे तेथी तेओ ‘सर्वतःचक्षु’ छे. जेने शुद्धज्ञान
छे, परिपूर्ण ज्ञान छे, ते सर्वतःचक्षु छे. अर्हंतो अने सिद्धभगवंतो सर्वतःचक्षु छे.
प्रश्नः– जेने सर्वतःचक्षु खुल्यां नथी ते जीवो केवा छे?
उत्तरः– जेने सर्वतःचक्षु खुल्यां नथी एवा बधाय संसारजीवो ‘इन्द्रियचक्षु’ छे, केम के तेओ
इन्द्रियज्ञानवडे मूर्त द्रव्योने ज देखनारा छे.
प्रश्नः– देवोने तो ईंद्रिय वगर देखनारुं अवधिज्ञान होय छे तो तेने पण ईंद्रियचक्षुपणुं कई रीते छे?
उत्तरः– देवोने अवधिज्ञान छे ते अपेक्षाए अवधिचक्षु कहेवाय छे, छतां तेओ पण अवधिज्ञान वडे
मात्र मूर्तद्रव्योने ज देखता होवाथी ईंद्रियचक्षु ज छे; केम के तेओ ते अवधिचक्षुवडे पण अतीन्द्रिय शुद्ध आत्मानुं
संवेदन करी शकता नथी.
प्रश्नः– इन्द्रियचक्षुवाळा जीवो केवा छे?
उत्तरः– ईंद्रियचक्षुवाळा आ बधाय जीवो मोहवडे हणायेला छे, इन्द्रियचक्षुवडे परने ज देखता थका
तेओ परज्ञेयमां ज स्थित वर्ते छे, स्वतत्त्वने तेओ जाणता नथी; तेथी परज्ञेयोमां ज लीन वर्तता थका तेओ
मोहथी हणाई गया छे, ज्ञानचक्षुनी परिपूर्ण देखवानी शक्ति तेमने मोहने लीधे हणाई गई छे.
प्रश्नः– सर्वतःचक्षु पणुं कई रीते सधाय छे?
उत्तरः– शुद्धात्मत्त्वना संवेदनथी सर्वतःचक्षु पणुं सधाय छे.
प्रश्नः– ते शुद्धात्मतत्त्वनुं संवेदन कई रीते थाय छे?
उत्तरः– ते शुद्धात्म–संवेदन तो अंतर्मुख एवा अतीन्द्रियज्ञान वडे ज थाय छे, ईंन्द्रिय चक्षुवडे कदी
शुद्धात्म–संवेदन थतुं नथी.
प्रश्नः– सर्वतःचक्षुपणानी सिद्धि माटे मोक्षमार्गी मुनिवरोने केवां चक्षु होय छे?
उत्तरः– मोक्षमार्गी एवा भगवंतश्रमणोने सर्वतः चक्षुपणानी सिद्धिने माटे ‘आगमचक्षु’ होय छे.
प्रश्नः– आगमचक्षु वडे ते मुनिवरो शुं करे छे?
उत्तरः– ते मोक्षमार्गी मुनिवरो आगमचक्षु वडे समस्त पदार्थोने जाणीने स्वपरनुं भेदज्ञान करे छे, ने
स्वपरना विभाग वडे मोहने छेदीने तेओ स्वतत्त्वमां ज उपयोगने जोडे छे; आ रीते ज्ञानस्वरूप स्वतत्त्वमां ज
एकाग्र रहेतां, सतत ज्ञाननिष्ठ ज रहेतां तेमने केवळज्ञानरूप सर्वतःचक्षु ऊघडी जाय छे.–आ रीते मोक्षमार्गी
मुनिभगवंतोने आगमचक्षु वडे सर्वज्ञचक्षुनी सिद्धि थाय छे.