Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष १६ मुं
अंक ४ थो
महा
वी. सं. २४८प
ः संपादकः
रामजी माणेकचंद शाह
१८४
पोतामां ज शांतिनुं वेदन
आत्मानी शांति पोताना स्वभावमां ज छे, पर साथे
तेने कांई संबंध नथी. जो आम न होय, ने पर साथे संबंध
होय तो, पर साथेनो संबंध तोडी, स्वभावमां एकता करीने
शांतिनो अनुभव थई शके नहि,–परथी जुदो पडीने पोताना
स्वरूपमां समाई जई शके नहि. परंतु परथी विभक्त ने
स्वरूपमां एकत्व थईने आत्मा पोतामां ज पोतानी शांतिनुं
वेदन करी शके छे, पोतानी शांतिना वेदन माटे आत्माने परनो
संबंध करवो पडतो नथी, केमके पोतानी शांति पोतामां ज छे.
माटे हे जीव! बहारमां शांति न शोध; तारा अंतरमां ज शांति
छे–एनो विश्वास करीने अंतर्मुख था, तो तारामां ज तने तारी
शांतिनुं वेदन थशे.