Atmadharma magazine - Ank 184
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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वैराग्य समाचार
भावनगरना भाईश्री हरिलाल जीवराज भायाणी माह सुद १२
ना रोज लगभग ७० वर्षनी वये हृदयरोगना हुमलाथी भावनगरमां
स्वर्गवास पाम्या छे. तेमने पू. गुरुदेव प्रत्ये घणों भक्तिभाव हतो, पू.
गुरुदेव सोनगढ रह्या त्यारथी ज तेओ अनेकविध सेवाकार्यमां भाग लेता
हता. तेओ सोनगढ–संस्थाना एक कार्यकार हता. साहित्य प्रवृत्तिओ पण
तेओ शोखीन हता. सोनगढ जैन अतिथि सेवासमितिना तेओ
शरूआतथी ज सेक्रेटरी हता. अने छेल्ले छेल्ले दक्षिणतीर्थयात्रा संघनी
व्यवस्था कमिटिना सभ्य तरीके संघनी व्यवस्था संबंधी अनेक कार्य तेओ
करता हता. माह शुद आठमे मुंबईथी संघना प्रस्थान वखते पण तेओ
मुंबईमां हाजर हता, अने त्यांथी माह शुद ११ना रोज तेओ भावनगर
पहोच्या.....त्यारबाद बीजे ज दिवसे तेमनो स्वर्गवास थई गयो. गुरुदेव
साथे यात्रामां आववानी तेमनी भावना हती परंतु मुंबईमां तेमनी
तबीयत नबळी थई जवाने कारणे तेओ जात्रामां आवी शकेल नहि.
छेल्ले छेल्ले घणा वखतथी तेओ सोनगढमां ज रहेता हता ने
सत्समागमनो लाभ लेता हता. तेओ समागमना सद्भावमां आगळ
वधीने आत्मानुं हित पामो–एम इच्छीए छीए. संसारनुं स्वरूप ज
आवुं अस्थिर–क्षणभंगुर छे; संसारमां निरंतर बनी रहेला आवा
क्षणभंगुरताना प्रसंगो उपरथी, आत्मार्थी जीवोए संसार तरफना
वलणथी विरक्त थईने, आत्मिक सिद्धि माटे तीव्रपणे उधकत थवा जेवुं
छे....श्री वीतरागी देव–गुरु–धर्मनो समागम जीवोने संसारना दरेके दरेक
प्रसंगमां वीतरागता शीखवीने आत्मसन्मुख थवानी प्रेरणा आपे छे.
बन्ने नयोनुं सफळपणुं
जीवनुं स्वरूप बे नयोथी बराबर जणाय छे; एकला
द्रव्यार्थिकनयथी के एकला पर्यायार्थिकनयथी जणातुं नथी; माटे बे नयोनो
उपदेश ग्रहण करवा योग्य छे. एकांतद्रव्य ज स्वीकारे ने पर्याय न स्वीकारे
तो, पर्याय वगर द्रव्य नो स्वीकार कोणे कर्यो? शेमां कर्यो? अने एकली
पर्यायने ज स्वीकारे ने द्रव्यने न स्वीकारे तो कोना उपर मीट मांडीने
पर्याय एकाग्र थशे? माटे बंने नयोनो उपदेश स्वीकारीने, द्रव्य–पर्यायनी
संधि करवायोग्य छे. द्रव्यपर्यायनी संधि एटले शुं? पर्यायने जुदी पाडीने
लक्षमां न लेतां, अंतर्मुख करीने द्रव्य साथे एकाकार करवी, एटले के
द्रव्य–पर्यायना भेदनो विकल्प तोडीने एकतारूप निर्विकल्प अनुभव
करवो, ते द्रव्यपर्यायनी संधि छे, ते ज बंने नयोनी सफळता छे.
पर्यायने जाणतां तेना ज विकल्पमां अटकी जाय–तो ते नयनुं
सफळपणुं नथी; ए ज रीते द्रव्यने जाणतां जो तेमां एकाग्रता न करे तो
ते नयनुं सफळपणुं नथी. द्रव्य–पर्याय बंनेने जाणीने बंनेना विकल्प
तोडीने, पर्यायने द्रव्यमां अंतर्लीन अभेद एकाकार करीने अनुभव करवो
तेमां ज बंने नयोनुं सफळपणुं छे.
–नियमसार गा. १९ ना प्रवचनमांथी