ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
___________________________________________________________________________________
धु्रव–धणी माथे कियो रे
आत्मानो धु्रवस्वभाव ते ज धिंग धणी
छे...धर्मीए पोताना धु्रवस्वभावने ज धणी
तरीके धार्यो छे.....अमारी निर्मळ परिणतिनो
नाथ अमारो धु्रवस्वभाव ज छे, बीजो कोई
अमारी निर्मळ परिणतिनो नाथ नथी.
धु्रवस्वभावना आशरे ज निर्मळ परिणतिनुं
रक्षण अने पोषण थाय छे. तेथी धु्रवस्वभाव ज
अमारी निर्मळ परिणतिनो रक्षक अने पोषक
छे.–आ रीते धर्मात्माए धु्रवस्वभावने ज
पोताना धिंग धणी तरीके धार्यो छे.
जुओ, आ धिंग धणीः पोतानो
छे.
जेणे पोताना श्रद्धामां–ज्ञानमां आवा
धु्रव–धणीने धार्यो तेने पछी जगतनो भय के
दरकार रहेती नथी, निर्भयपणे ते पोताना
मोक्षपंथे चाल्यो जाय छे.
___________________________________________________________________________________
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टवती मुद्रक अने
प्रकाशकः हरिलाल देवचंद शेठ आनंद प्री. प्रेस–भावनगर