Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८पः ९ः
श्रवणबेलगोलमां
बाहुबली प्रभुनी बीजी यात्रा अने अभिषेक
महा वद ११ना रोज फरीने
ईंद्रगीरी (अर्थात् विंध्यगीरी) उपर
बाहुबली भगवाननी यात्रा अर्थे फरीने
गुरुदेव संघसहित पधार्या हता. आजे
गुरुदेवे भावपूर्वक बाहुबली प्रभुना
चरणोनो अभिषेक कर्यो हतो. त्यारबाद
यात्रिकोए पण भक्तिपूर्वक अभिषेक
कर्यो हतो. आ अभिषेक संबंधी
उछामणीमां तेमज रथयात्रा संबंधी
उछामणीमां लगभग दसेक हजार रूा.
थया हता. आ रूां नो उपयोग अहींना
पर्वत उपर यात्राना स्मरणार्थे करवामां
आवशे. अभिषेक बाद गुरुदेवे चारे
बाजुथी फरी फरीने बाहुबलीनाथने
नयनभर नीरख्या....
नीरखत तृप्ति न
थाय
..... बस, जाणे भगवानने
नीरख्या ज करीए!–अभिषेक बाद
खूब भक्ति करी..आम बाहुबली
भगवाननी बीजी यात्रा अने अभिषेक
करीने गुरुदेव साथे आनंदथी भक्ति
करतां करतां भक्तो नीचे
आव्या...बाहुबली भगवाननी आ
बीजी जात्राथी भक्तोने घणो आनंद
थयो.
बपोरे प्रवचनमां भेदज्ञानना
निमित्तोनी दुर्लभतानुं वर्णन आवतां
गुरुदेवे कह्युंः ‘जुओ, आ निरावरण
शांत वीतरागी बाहुबली भगवान आ
दुनियामां अजोड छे, ते भेदज्ञाननुं
निमित्त छे; चैतन्यशक्तिने खुल्ली करीने
ऊभेला आ बाहुबली भगवान साक्षात्
चैतन्यने देखाडे छे. व्याख्यान पछी
दक्षिणीबहेनोए रासपूर्वक भक्ति करी
हती. संघना यात्रिको सांजे भोजन
करीने श्रवणबेलगोल तरफ रवाना
थया.
“–निरखत तृप्ति न थाय....”