Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः ८ः आत्मधर्मः १८प
त्यारबाद गुरुदेवे फरी फरीने बाहुबली भगवाननां दर्शन कर्या......अने अनेकविध भक्तिभर्या उद्गारो
काढया. (जे आपणे यात्राना विस्तृत वर्णन वखते जोईशुं.) अने पर्वत उपर बिराजमान बीजा अनेक
भगवंतो, शिलालेखो वगेरेनां दर्शन कर्यां....आम घणा आनंद, उल्लास अने भक्तिभावथी श्रवणबेलगोलमां
बाहुबली भगवाननी यात्रा करीने, संघसहित गुरुदेव नीचे पधार्या.
बाहुबलीनाथनी यात्रा करावनार गुरुदेवने नमस्कार हो.
बपोरे प्रवचन वखते पण गुरुदेव बाहुबली भगवाननो महिमा वर्णवीने यात्रानो हर्ष व्यक्त करता
हता. श्रवणबेलगोल गाममां पण अनेक जिनमंदिरो छे; रात्रे चोवीस भगवंतोना मंदिरमां भक्ति थई हती.
चंद्रगीरीनी यात्रा
महा वद दसमनी सवारमां पू. गुरुदेव संघसहित श्रवणबेलगोलनी बीजी पहाडी चंद्रगीरीनी यात्राए
पधार्या. आ पहाडी उपर लगभग १४ प्राचीन जिनमंदिरो, अति महत्वना प्राचीन शिलालेखो, तेमज
भद्रबाहुस्वामीनी गुफा छे. आ पर्वत प०० मुनिओनुं समाधिस्थान छे. एक मंदिरमां पार्श्वप्रभुना मोटा
प्रतिमाजी छे; बीजुं एक मंदिर जे चामुंड राजानुं बंधावेलुं छे तेमां भद्रबाहु अने चंद्रगुप्तना जीवन संबंधी
प्राचीन चित्रो कोतरेला छे; पर्वत उपर आ मंदिर सौथी जूनुं छे, अने नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्तीए गोमट्टसारनी
रचना आ मंदिरमां करी हती. मंदिरोना दर्शन बाद शांतिनाथ प्रभु (जे लगभग १प फूट ऊंचा छे–तेमनी)
सन्मुख पूजन–भक्ति थया हता. अहींना अनेक प्राचीन शिलालेखो (जे कन्नडी लिपिमां छे) तेमां
कुंदकुंदाचार्यदेवनो अति आदरपूर्वक उल्लेख छे; एक शिलालेखमां तेओ श्रीने“तत्कालीन अशेष तत्त्वोना ज्ञाता”
कह्या छे. आ उपरांत “
वंधो विभुर्भुवि न कैरिह कौण्डकुण्ड” इत्यादि जे शिलालेख सोनगढना समयसार
वगेरेमां छपायेला छे ते शिलालेख अहींना पार्श्वप्रभुना मंदिरमां डाबा हाथ उपर छे, तेनुं घणा भावपूर्वक
गुरुदेवे अने भक्तोए अवलोकन कर्युं हतुं. त्यारबाद भद्रबाहु स्वामीनी गूफा जोई–जेमां भद्रबाहु स्वामीना
प्राचीन चरणकमळ छे, त्यां दर्शन करीने अर्घ चडाव्यो.
जिननाथपुरी
चंद्रगीरी धामनी यात्रा बाद तेनी बीजी बाजु तळेटीमां आवेला जिननाथपुर गाममां बे जिनमंदिरोना
दर्शन करवा गुरुदेव संघसहित पधार्या हता. तेमांथी एक मंदिरमां ते पार्श्वनाथ प्रभु बिराजे छे के जेना फोटानी
सन्मुख पू. गुरुदेव सोनगढमां परिवर्तन कर्युं हतुं.
बपोरे श्रवणबेलगोल शहेरना बीजा पांच मंदिरोना दर्शन करवा गुरुदेव पधार्या हता.... तेमां
अक्कनवसती अने मंगावसती ए बे मंदिरो अकका अने मंगी (मोटी बहेन अने नानी बहेन) ए बे बहेनोए
बंधावेल छे. अक्कनवसती–मंदिरमां कसोटीना स्तंभ उपर सुंदर प्राचीन कारीगरी छे; ते जोतां जैनधर्मना
प्राचीन वैभवनो ख्याल आवे छे.
तीर्थधामोमां गुरुदेवने आहारदाननो लाभ मळतां भक्तोने बहु आनंद थतो हतो. रात्रे भट्टारकजीना
मंदिरमां विविध प्रकारना जिनबिंबोना दर्शन कर्या हता.