फागणः २४८पः १३ः
वांदेवास
फागण सुद पांचमना रोज पोन्नुरनी यात्राए जतां वच्चे कांजीवरम थईने वांदेवासमां लगभग २०००
माणसो गुरुदेवना दर्शन तथा श्रवण माटे एकठा थया हता, ने गुरुदेवने त्रण अभिनंदन पत्रो आप्या हता.
अजाण्यो देश, अजाण्या माणसो, ने अजाणी भाषा, छतां गुरुदेव ज्यां ज्यां पधार्या त्यां त्यां हजारो, लोकोए
घणाज उमंगथी गुरुदेवनुं सन्मान कर्युं....ने गुरुदेवनो महान प्रभाव देखीने घणा प्रसन्न थया.
कुंदकुंद प्रभुनी पवित्र तपोभूमि पोन्नुरधामनी उल्लासभरी यात्रा
लगभग ९ वागे पोन्नुर पहोंची गया हतां. अहीं एक नानकडो खूब ज रळियामणो पर्वत छे....आ
पर्वत कुंदाकुंदाचार्यदेवनी तपोभूमि छे. तेओश्री अहीं ध्यान करता....एटलुं ज नहीं परंतु एवी वात पण अहींना
लोकोमां प्रसिद्ध छे के तेओश्री अहींथी विदेहक्षेत्रे गया हता ने अहीं ज परमागमोनी रचना करी हती. आवी
कुंदकुंदप्रभुनी पवित्र भूमिमां आवतां गुरुदेव वगेरे सौने घणो ज आनंद थयो....अनेक चंपाना वृक्षोथी ए
पोन्नुर धाम शोभी रह्युं छे... ‘पोन्नुर’ नो अर्थ थाय छे ‘सुर्वणनो डुंगर’ तेना उपर कुंदकुंदाचार्यदेवना
महामंगळ चरणपादूका छे; कुंदकुंदप्रभुना पवित्र चरणोना प्रतापे आ पोन्नुरधाम सुवर्णना डुंगर करतां पण
वधारे शुसोभित लागे छे. पू. गुरुदेव चालीने पर्वत उपर चडी गया......पर्वत चडतां दसेक मिनिट लागे छे...पू.
बेनश्री चंपाबेन अने पू. बेन शांताबेन पण चालीने पर्वत उपर चडया हता, ने पर्वतनुं द्रश्य जोईने खूब ज
प्रसन्न थया हता.
पर्वत उपर आवीने गुरुदेवे घणा भावथी ए पवित्र क्षेत्रनुं अवलोकन कर्युं. पर्वत उपर चंपाना पांच
वृक्षो छे....ज्यां कुंदकुंदप्रभुना चरणकमळ स्थापित छे तेनी बराबर उपर एक चंपानुं झाड छे ने तेना उपरथी
खरतां चंपा–पुष्पो कुदरते कुंदकुंदप्रभुना चरणो उपर पडे छे.–ए रीते ए चंपा–पुष्पो कुंदकुंदप्रभुनी जगत्पूज्यता
प्रसिद्ध करी रह्या छे.
शरूआतमां घणा भावथी कुंदकुंदाचार्यदेवनुं समूह पूजन थयुं. उत्साहभर्या पूजन बाद गुरुदेवे घणा ज
भक्तिभावथी नीचेनुं स्तवन गवडाव्युं.
एवा कुंदप्रभु अम मंदिरिये......
एवा आतम आवो अम मंदिरिये...
जेणे तपोवन तीर्थमां ज्ञान लाध्युं.....
जेणे वन–जंगलमां शास्त्र रच्युं....
ॐ कार ध्वनिनुं सत्त्व साध्युं......
एवा कुंदप्रभु अम मंदिरिये.
जेणे जीवनमां जिनवर चिंतव्या......
जेणे जीवनमां जिनवरने देख्या.....
जेणे जीवनमां सीमंधरप्रभु देख्या....
–एवा कुंदप्रभु अम मंदिरिये
–इत्यादि भक्ति घणा ज भावपूर्वक थई हती...गुरुदेवना मुखे कुंदकुंदप्रभुनी आवी सरस भक्ति
सांभळतां बेनश्रीबेन वगेरेनो घणो ज हर्ष थतो हतो. कुंदकुंद प्रभुना धामनी आ यात्राथी गुरुदेवने तेमज
एकेएक भक्त जनने हृदयमां अद्भूत भक्ति ने उल्लासनी उर्मिओ ऊछळती हती.
त्यार बाद, कुंदकुंद प्रभुना आ पवित्र धामनी गुरुदेवनी संघ सहित महान यात्राना एक
संभारणानिमित्ते अहीं कुंदकुंद प्रभुना चरणकमळ उपर एक मंडप बंधाववानो विचार थतां ते माटे फंड थयुं हतुं.
तेमां चारेक हजार रूा. थया हता; जेमा १पपप) रूा. श्री जैन स्वाध्याय मंदिर–सोनगढ तरफथी (पू. बेनश्रीबेन
हस्तक फंडमांथी) जाहेर करवामां आव्या हता
त्यार बाद गुरुदेवे घणा उल्लासथी पोताना परमगुरु भगवान कुंदकुंदप्रभुना पावन चरणोनो अभिषेक
कर्यो हतो...बेनश्रीबेने पण घणा भावथी कुंदकुंदप्रभुना चरणोनो अभिषेक कर्यो हतो...अभिषेक प्रसंगे गुरुदेव
वगेरेना हृदयमां कुंदकुंदप्रभु प्रत्ये केटली परमभक्ति भरेली छे ते देखातुं हतुं;–जाणे के तेओना अंतरमां