Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १८प
भरेली भक्तिनो प्रवाह ज जळरूपे बहार आवीने कुंदकुंदप्रभुना चरणोनो अभिषेक करतो होय!!
अभिषेकादि बाद पहाड उपरनी नानी नानी ३ गुफाओ, चंपाना वृक्षो वगेरेनुं अवलोकन करीने सौ
नीचे उतर्या हता...उतरतां उतरतां...पू. बेनश्रीबेन आश्चर्यकारी भक्तिद्वारा आजनी यात्रानो उत्साह अने
कुंदकुंदप्रभु प्रत्येनी परमभक्ति व्यक्त करता हता....आ रीते पोन्नुरमां कुंदकुंद प्रभुनी पवित्र तपोभूमिनी यात्रा
घणा ज आनंदथी थई....जाणे साक्षात् कुंदकुंद प्रभुना ज दर्शन थया होय–एवो आनंद भक्तोने आ जात्रामां
थयो.
परम उपकारी कुंदकुंदाचार्य भगवानने नमस्कार हो...
कुंदकुंद प्रभुनी पवित्र तपोभूमि पोन्नुरने नमस्कार हो...
कुंद प्रभुना पवित्र धामनी यात्रा करावनार कहानगुरुदेवने नमस्कार हो....
यात्रा बाद पोन्नुर पर्वतनी तळेटीमां ज मंडप बांधीने त्यां गुरुदेवने अभिनंदनपत्रो अर्पण करवामां
छे.
पोन्नुर–तळेटीमां मंगल प्रवचन करतां गुरुदेवे कुंदकुंद प्रभुनो महिमा व्यक्त कर्यो हतो.
आ रीते अद्भूत उल्लास–भक्ति अने हर्षथी कुंदकुंद प्रभुनी तपोभूमिनी मंगलयात्रा करीने गुरुदेव अने
संघ वांसखेड आव्या....ने त्यांना जैनसमाज तरफथी संघनुं भोजन थयुं....भोजन बाद, हवे मद्रास सुधीना
यात्रिको मुंबई जवा माटे (चार बसोमां) अहींथी विखूटा पडया...गुरुदेवथी अने संघथी विखूटा पडता
यात्रिको गदगद थई जता हता....अने महिना सुधी भेगा रहेला यात्रिको एकबीजाने लागणीपूर्वक विदाय
आपता ए द्रश्य पण भावभीनुं हतुं....चार बसो अने अनेक मोटरो अहींथी मुंबई तरफ पाछी फरी
हती,......लगभग ४०० यात्रिका पाछा फर्या हता.....ने बाकी चार बसो अने दस जेटली मोटरोमां लगभग
२प० यात्रिको पू. गुरुदेव साथे यात्रामां आगळ जवा माटे मद्रास तरफ चाल्या.
अकलंक वसती
मद्रास जतां वच्चे केरेन्डे (Karandai) मां बे जिनमंदिरोना दर्शन कर्या....एक जिनमंदिरनुं नाम
‘अकलंक वसती’ छे. अकलंकस्वामीनो बौद्धो सामेनो मोटो वादविवाद अहीं थयो हतो अने वादविवादमां
जीत्या बाद तेमणे अहीं ध्यान कर्युं हतुं....ते संबंधी एक चित्र मंदिरनी दिवालमां कोतरेलुं छे. तेमज अकलंक
स्वामीनी समाधिनुं स्थान पण अहीं छे. गुरुदेव अहीं पधारतां आसपासना हजार जेटला माणसो आव्या
हता, अने अकलंकवसतीमां तालीम भाषामां गुरुदेवने स्वागतपत्रिका अर्पण करी हती; त्यारबाद गुरुदेवे त्यां
मंगल प्रवचन करीने अकलंक स्वामी, कुंदकुंदस्वामी वगेरे संतोनो महिमा कर्यो हती. प्रवचन बाद गुरुदेवने
अभिनंदनपत्र आपवामां आव्युं हतुं. जैनधर्मना महान प्रभावक अकलंकस्वामीनुं स्थान नीरखतां गुरुदेवने
अने भक्तोने आनंद थयो हतो. आ रीते कुंदकुंदस्वामी अने अकलंक स्वामीना पावन धामोनी यात्रा करीने
सांजे पाछा मद्रास आवी गया हता.
आ रीते, ‘पू. श्री कानजीस्वामी दिगंबर जैन तीर्थयात्रा संघनी दक्षिणना तीर्थधामोनी यात्रामां मुंबईथी
मद्रास सुधीनो पहेलो हप्तो पूर्ण थयो.
मद्रास बाद पू. गुरुदेव संघसहित बेझवाडा, हैदराबाद, सोलापुर, कुंथलगिरि, अने औरंगाबाद ईलोरा–
अजंटानी गुफाओ जोईने ता. २९–३–प९ ना रोज जलगांव शहेर पधार्या छे. त्यारबाद मलकापुर वगेरे थईने
मुक्तागीरी वगेरे सिद्धक्षेत्रोनी यात्रा करशे