Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८पः १७ः
हजारो दर्शकोथी ऊभराई जता.....जुलुस दरमियान आखा रस्ते अजमेर भजनमंडळीनुं सुंदर नृत्य चालु ज
हतुं.....मूलचंदजीनी भक्तिभीनी कळाए मुंबईनी जनताने मुग्ध करी हती.....नेम प्रभुने हाथी उपर देखीने
भक्त जनोए अद्भुत उल्लासथी आखे रस्ते जे भक्ति करी छे तेनुं स्मरण आजे पण हृदयने उल्लासित करे
छे...मुंबईनगरीमां जैनधर्मनुं आ प्रभावक द्रश्य देखीने भक्तो उल्लासथी नाची ऊठया हता......अहीं एक
वातनो उल्लेख करतां हर्ष थाय छे के जन्म कल्याणकना जुलुस माटेना बे हाथी ‘कमला सरकस’ तरफथी
होंसपूर्वक आपवामां आव्या हता....ज्यारे हाथीनी मांगणी करवामां आवी त्यारे तेना मालीके होंसथी जवाब
आप्यो के “भगवानना उंत्सवमां अमारा हाथी क्यांथी?” अने आ बदल तेमने एक हजार रूा. नी भेट
आपवा मांडी त्यारे तेनो अस्वीकार करतां तेमणे कह्युं केः आवा धर्मना काममां अमारा हाथी उपयोगमां आवे
ते अमारुं महाभाग्य छे; आवा कार्य माटे ज्यारे जरूर पडे त्यारे अमने कहेजो, अमे गमे त्यांथी अमारा हाथी
मोकलशुं. तेमनी आ भावना बदल कमला सरकसना मालीकने अभिनंदन घटे छे.
आझाद मेदानमां मेरूपर्वतनी रचना करवामां आवी हती, त्यां पहोंचतां हाथीए मेरूपर्वतने उमळकाभेर
त्रण प्रदक्षिण करी.....त्यार बाद पचीस हजार जेटली मानवमेदनी वच्चे अति आनंदोल्लासपूर्वक श्री जिनेन्द्र
भगवाननो जन्माभिषेक थयो.....जन्माभिषेक प्रसंगनुं द्रश्य अद्भुत रोमांचकारी हतुं. जन्माभिषेक बाद
प्रतिष्ठामंडपमां आवीने ईंद्र–ईंद्राणीओए भक्तिथी तांडवनृत्य कर्युं हतुं. बपोरे बालतीर्थंकर नेमिकुमारनुं
पारणाझूलन थयुं हतुं.....पू. बेनश्रीबेने अतिशय भक्ति अने वात्सल्यथी भगवाननुं पारणुं झुलाव्युं हतुं....अने
बीजा हजारो भक्तोए पण भक्तिथी भगवाननुं पारणुं झुलाव्युं हतुं. रात्रे नेमकुमारना लग्नप्रसंगनी
राजसभानुं भव्य द्रश्य थयुं हतुं.... राजा–महाराजा तरीके अनेक प्रतिष्ठित गृहस्थोथी सभा शोभती हती.
माह सुद चोथना रोज भगवाननो दीक्षाकल्याणक थयो हतो; लग्ननी तैयारी, रथमां प्रभुजीनुं गमन,
पशुओनो पोकार, भगवाननो वैराग्य, अने ते प्रसंगे नेम–सारथीनो सुंदर संवाद वगेरे द्रश्यो खूब ज
भाववाळा हता; वैराग्य थतां लौकांतिक देवोनुं आगमन, भगवाननी स्तुति अने वैराग्यसंबोधन वगेरे द्रश्यो
थया हता. त्यारबाद भगवाननी दीक्षा माटे वनयात्रानो अभिभव्य वरघोडो नीकळ्‌यो थतो. दीक्षावनमां
(गोवालीआ टेन्क मेदानमां) २०–२प हजारनी उपस्थिति वच्चे भगवाननी दीक्षाविधि थई हती. दीक्षाविधि
बाद त्यां दीक्षावनमां गुरुदेवे अद्भुत भावभीना प्रवचन द्वारा मुनिदशानो अपार महिमा करीने तेनी भावना
व्यक्त करी हती. दीक्षाविधि बाद प्रभुना केशने समुद्रमां क्षेपण करवामां आव्या हता.
दीक्षाकल्याणकदिने रात्रे सुंदर मुनिभक्ति तेमज नेमराजुलनो संवाद वगेरे कार्यक्रम हतो...ते प्रसंगे
सभामां वैराग्यनुं वातावरण छवाई गयुं हतुं. मुनिदशामां बिराजमान नेमप्रभुना दर्शनथी भक्तोने घणो
आनंद थयो हतो. प्रतिष्ठामंडपना प्रवेशद्वारा पासे नेमिनाथ भगवानना वैराग्य संबंधी एक घणी सुंदर रचना
करवामां आवी हती; नेमनाथ कुमारनो रथ, पशुओना पींजरा पासे आवतां ज भगवानने देखीने डोक ऊंची
करीने पशुओनो पोकार, वरमाळा पहेराववा उत्सुक राजुलमती वगेरे सुंदर रचना तेमां हती. आ उपरांत बीजी
रचनामां, गुरुदेवना प्रतापे थयेला सौराष्ट्र वगेरेना जिनमंदिरोनुं द्रश्य हतुं, तेमज बाहुबली भगवान हता.
महा सुद पांचम
आजे सवारमां गुरुदेवना प्रवचन बाद मुनिराज नेमप्रभुना आहारदाननो प्रसंग बन्यो हतो.....आ
प्रसंग अद्भुत हतो.....गुरुदेवनी अने सर्वे भक्तोनी मुनिभक्ति जोईने लोको स्तब्ध बनी जता हता. आहार
प्रसंग शेठश्री मणिलालभाईना कुंटुंबीजनोने त्यां थयो हतो......अनेक भक्तो अतिशयभक्तिपूर्वक मुनिराजने
आहारदान करता हता अने पोताना जीवनने धन्य समजता हता....नेमनाथ मुनिराज आहारनो आ अति
भावभीनो प्रसंग नीहाळीने गुरुदेवनुं अंतर पण मुनिभक्तिथी ऊभरातुं हतुं, अने तेमणे अति भक्तिथी
स्वहस्ते मुनिभगवानने आहारदान कर्युं हतुं. गुरुदेवना जीवनमां आ प्रसंग अपूर्व हतो....एक बाळकनी जेम
नम्रभावे प्रसन्नचित्ते गुरुदेव ज्यारे मुनि–भगवानना करकमळमां केरीना रसनुं दान करी रह्या हता त्यारे खूब
ज भक्ति अने हर्षपूर्वक हजारो भक्तजनो तेनुं अनुमोदन करी