Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 25

background image
वर्ष १६ मुं
अंक प मो
फागण
वी. सं. २४८प
ः संपादकः
रामजी माणेकचंद शाह
१८प
म हा पा त्र
आत्मा एवी संप्रदानशक्तिवाळो छे के तेनो स्वभाव परिणमीने पोताने
केवळज्ञान आपे अने पोते ज पात्र थईने ते ल्ये. पण पोतानी आवी शक्तिने
भूलीने अज्ञानीए पोताना आत्माने एवो मान्यो छे के जाणे ते रागनुं ज पात्र
होय तेने समजावे के अरे भगवान! तारा आत्मामां तो रागने तोडीने पोते
केवळज्ञाननुं पात्र थाय एवी ताकात छे.......तेने ओळख. अज्ञानी घडीए घडीए
(पर्याये पर्याये) पोताना स्वभावने भूलीने मिथ्यात्वभावथी विकारने ज प्राप्त
करे छे; धर्मात्मा ज्ञानी तो पोताना स्वभावने ओळखीने तेमांथी घडीए घडीए
क्षणे–क्षणे पर्याये–पर्याये निर्मळ भावने ज ल्ये छे. निर्मळपर्यायने देवानी अने तेने
ज लेवानी आत्मानी संप्रदानशक्ति छे; परवस्तुनुं कांई लेवानी के परने कांई
देवानी ताकात आत्मामां–द्रव्यमां गुणमां के पर्यायमां–नथी. अने रागनो देनार के
रागनो लेनार एवो पण आत्मानो स्वभाव नथी. पर्यायमां क्षणिक रागादि थाय
तेने ज ग्रहण करनारो पोताने जे माने ते जीव, पोताना स्वभावमां केवळज्ञान
लेवानी महान पात्रता छे तेने ओळखतो नथी.
(संप्रदानशक्तिना प्रवचनमांथी)