Atmadharma magazine - Ank 185
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८पः १९ः
महा सुद छठ्ठनी सवारमां निर्वाणकल्याणक थयो हतो, ते वखते मोक्षधाम गीरनारनी सुंदर रचना
करवामां आवी हती.
आ रीते मुंबईमां श्री जिनेन्द्र भगवान ना पंचकल्याणक पूरा थया....ते भव्य जीवोनुं कल्याण
करो.
माह सुद छठ्ठे निर्वाण कल्याणक बाद तरत जिनमंदिरमां जिनेन्द्रभगवंतोनी वेदी प्रतिष्ठा थई हती.
जिनमंदिरनो मोटो होल आरसनी रमणीय वेदीथी शोभी रह्यो छे. जिनमंदिरमां मूळनायक तरीके श्री सीमंधर
भगवान छे; तेमनी एक तरफ श्री चंद्रप्रभु भगवान बिराजे छे ने बीजी तरफ श्री शांतिनाथ भगवान बिराजे
छे. आ उपरांत श्री नेमिनाथ भगवान तथा आदिनाथ भगवान अने महावीर भगवान बिराजे छे.
भगवंतोनी प्रतिष्ठा खूब ज उल्लासपूर्वक थई हती. गुरुदेवनी हाजरीमां भक्तजनो पोताना मस्तके लईने
ज्यारे भगवानने वेदी उपर पधारावता हता त्यारे एवा भाव व्यक्त थता हता के अहा! गुरुदेवना प्रतापे
अमने अमारा जीवनना नाथ जिनेन्द्रभगवान मळ्‌या!! भगवंतोनी प्रतिष्ठा बाद कलश अने ध्वजारोहण थयुं
हतुं. कलश अने ध्वज उपर तेमज भगवाननी वेदीनी बंने तरफ पू. गुरुदेवना सुहस्ते मंगल स्वस्तिक थया
हता.
आ रीते जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा घणा आनंद अने उल्लासपूर्वक थई हती....अने हजारो माणसो
प्रतिष्ठामंडपमां बेठाबेठा तेनुं वर्णन लाउडस्पीकर द्वारा सांभळी रह्या हता.
वेदी उपर बिराजमान सीमंधर भगवंतोना दर्शन करतां भक्तोनुं हृदय हर्ष अने भक्तिथी गदगद थई
जतुं हतुं. अनेक भक्तजनो भगवानने देखीने नाची ऊठया हता....आ प्रसंगे पू. बेनश्रीबेने पण अद्भुत
भक्ति करावी हती. मुंबईनगरीना आ भव्य उत्सव संबंधी “वाहवा जी वाहवा” वाळी भक्ति करावी
हती....तेम पोते हाथमां चामर लईने खूब ज भावभीनी भक्ति करी हती. ए भक्ति देखीने भक्तोना अंतरमां
जिनेन्द्र महिमानी लहेरो उल्लसती हती....अने ज्ञानीओना अंतरमां जिनेन्द्र भगवान प्रत्ये केवो अपार प्रेम छे
ते देखातुं हतुं. आवा विरल भक्तिप्रसंगो नजरे जोनारने ज तेनो ख्याल आवे.
जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा बाद शांतियज्ञ थयो हतो अने सांजे जिनेन्द्रभगवाननी अति भव्य
रथयात्रा नीकळी हती....आ रथयात्रामां जाणे के आखी मुंबई नगरीनो वैभव ऊभराई गयो होय–एवुं
लागतुं हतुं....जेमां ११ बेन्ड पार्टी हती....त्रण सुंदर रथ हता. आ उपरांत अजमेरनी भजनमंडळी, प१ जेटली
मोटरो अनेक छडी–ध्वजा–चामर वगेरे घणो ज वैभव हतो.....आ रथयात्राए आखी नगरीमां जिनेन्द्र महिमा
फेलावी दीधो हतो....नगरीना लाखो लोको हर्षभक्ति ने आश्चर्यथी आ रथयात्रा नीहाळवा ऊभराया हता.
आम भव्य रथयात्रापूर्वक आ महान प्रतिष्ठा– महोत्सव संपूर्ण थयो हतो.
आ प्रतिष्ठा महोत्सव प्रसंगे ईंदोरना श्रीमान पं. श्री बंसीधरजी सिद्धांतशास्त्री, तेमज काशीना पंडित
श्री कैलाशचंद्रजी सिद्धांतशास्त्री अने पंडित श्री फूलचंद्रजी सिद्धांतशास्त्री आव्या हता... त्रणे पंडितो आ
प्रतिष्ठामहोत्सव जोईने खूब ज प्रभावित थया हता. अने तेओए १प–१प हजार माणसोनी सभा वच्चे
भाषण करीने पू. गुरुदेवनो महिमा अने प्रशंसा करी हती. पं. बंसीधरजीए तो गदगद भावपूर्वक बेधडकपणे
स्पष्ट कह्युं हतुं केः “बार बार मैंं कहता आया हुं, शीखरजी में भी मेंने कहा था और फिर यहां पर भी मैं कहता
हूं कि महाराजजी (कानजीस्वामी) भेद ज्ञानकी जो बात सुना रहे है यह उनके घरकी नयी बात नहीं हैं, ईसी
बातको तीर्थंकरोने, भेदज्ञानी बडेबडे आचार्योने और पूर्वके बडेबडे पंडितोने कही है, वही बात आज आप
सुना रहे है...और यही सच्चा निखरा हुआ दिगंबर जैन धर्म है...”
–आ प्रमाणे मुंबई नगरीना पंच कल्याणक प्रतिष्ठामहोत्सव संबंधी मुख्य मुख्य समाचारो संक्षेपमां
फरीथी लखीने “आत्मधर्म” ना वांचको समक्ष रजू कर्या छे....विगतवार विस्तृत समाचारो “आत्मधर्म” ना
वांचकोने न मळी शकवा बदल अमे दिलगीर छीए.