भगवान छे; तेमनी एक तरफ श्री चंद्रप्रभु भगवान बिराजे छे ने बीजी तरफ श्री शांतिनाथ भगवान बिराजे
छे. आ उपरांत श्री नेमिनाथ भगवान तथा आदिनाथ भगवान अने महावीर भगवान बिराजे छे.
भगवंतोनी प्रतिष्ठा खूब ज उल्लासपूर्वक थई हती. गुरुदेवनी हाजरीमां भक्तजनो पोताना मस्तके लईने
ज्यारे भगवानने वेदी उपर पधारावता हता त्यारे एवा भाव व्यक्त थता हता के अहा! गुरुदेवना प्रतापे
अमने अमारा जीवनना नाथ जिनेन्द्रभगवान मळ्या!! भगवंतोनी प्रतिष्ठा बाद कलश अने ध्वजारोहण थयुं
हतुं. कलश अने ध्वज उपर तेमज भगवाननी वेदीनी बंने तरफ पू. गुरुदेवना सुहस्ते मंगल स्वस्तिक थया
हता.
भक्ति करावी हती. मुंबईनगरीना आ भव्य उत्सव संबंधी “वाहवा जी वाहवा” वाळी भक्ति करावी
हती....तेम पोते हाथमां चामर लईने खूब ज भावभीनी भक्ति करी हती. ए भक्ति देखीने भक्तोना अंतरमां
जिनेन्द्र महिमानी लहेरो उल्लसती हती....अने ज्ञानीओना अंतरमां जिनेन्द्र भगवान प्रत्ये केवो अपार प्रेम छे
ते देखातुं हतुं. आवा विरल भक्तिप्रसंगो नजरे जोनारने ज तेनो ख्याल आवे.
लागतुं हतुं....जेमां ११ बेन्ड पार्टी हती....त्रण सुंदर रथ हता. आ उपरांत अजमेरनी भजनमंडळी, प१ जेटली
मोटरो अनेक छडी–ध्वजा–चामर वगेरे घणो ज वैभव हतो.....आ रथयात्राए आखी नगरीमां जिनेन्द्र महिमा
फेलावी दीधो हतो....नगरीना लाखो लोको हर्षभक्ति ने आश्चर्यथी आ रथयात्रा नीहाळवा ऊभराया हता.
आम भव्य रथयात्रापूर्वक आ महान प्रतिष्ठा– महोत्सव संपूर्ण थयो हतो.
प्रतिष्ठामहोत्सव जोईने खूब ज प्रभावित थया हता. अने तेओए १प–१प हजार माणसोनी सभा वच्चे
भाषण करीने पू. गुरुदेवनो महिमा अने प्रशंसा करी हती. पं. बंसीधरजीए तो गदगद भावपूर्वक बेधडकपणे
स्पष्ट कह्युं हतुं केः “बार बार मैंं कहता आया हुं, शीखरजी में भी मेंने कहा था और फिर यहां पर भी मैं कहता
हूं कि महाराजजी (कानजीस्वामी) भेद ज्ञानकी जो बात सुना रहे है यह उनके घरकी नयी बात नहीं हैं, ईसी
बातको तीर्थंकरोने, भेदज्ञानी बडेबडे आचार्योने और पूर्वके बडेबडे पंडितोने कही है, वही बात आज आप
सुना रहे है...और यही सच्चा निखरा हुआ दिगंबर जैन धर्म है...”
वांचकोने न मळी शकवा बदल अमे दिलगीर छीए.