अनेक कष्टों को सहन करके हम लोगों को अपना शुभ दर्शन
दिया है हम एतदर्थ अत्यन्त आभारी हैं।
है। यानी पहाडों से धिरा हुआ क्षेत्र मुनियों के लिए
निवासस्थान माना जाता है। अलावा इसके एक ऐतिहासिक
घटना भी प्रसिद्ध है। यहाँ से थोडी दूर पर अविडदांगी
नामक एक गाँव है जहाँ पर हिमशीतल राजा राज्य करता
था। इसी राजा की सभा में परमपूज्य श्री अकलंकदेवने बौद्धों
को बाद में हराया था। इस बीच में एक बार मुनिगिरि में
प्रसिद्ध कृष्मांडिनी देवी का दर्शन कर जाने के बाद बाद में
उनकी जीत हुई आदि। जिसकी यादगारी में मन्दिर के पूरब
की दीवार पर श्री अकलंकदेवका चरण चिह्न भी अंकित हैं।
इसका तथ्य अकलंक स्तोत्र के राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य
सदसि प्रायो विदग्धात्मनां, बौद्धधानिसकलान् विजित्य
सघट; पादेन विस्पालितः आदि पंक्ति से विदित हो जाता है।
उत्तर भारतीय यात्रिकों के लिये मार्गदर्शक बनेगा। अन्त में
आपसे प्रार्थना है कि इस प्रकार बार–बार पधार कर क्षेत्र का
उद्धार करें।
ता। १४–३–१९५९ आपके आगमन से प्रफुल्लित