Atmadharma magazine - Ank 186
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959).

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ઃ ૧૦ઃ આત્મધર્મઃ ૧૮૬
आपने हमारे इस प्रान्त में भ्रमण करके जो इस
वसुंधरा को अपने चरणों से पवित्र किया है और मार्गजन्य
अनेक कष्टों को सहन करके हम लोगों को अपना शुभ दर्शन
दिया है हम एतदर्थ अत्यन्त आभारी हैं।
आपकी इन्हीं सब विशेषताओं से आकृष्ट होकर
अभिनन्दन करते हुये हम लोग आनंद विभोर हो रहे हैं।
खैरागढ हम हैं आपके स्नेहींः–
दिनांक चैत्र शुद एकम सकल दिंगबर जैन समाज
ता। ९–४–५९ खैरागढराज
।। श्रीजिनाय नमः।।
श्रीशैलपुरम तथा मुनिगिरि गांव के निवासीयों द्वारा
श्री कानजीस्वामी तथा उनके
यात्रासंघ के स्वागतार्थ समर्पित
स्वागत पत्रिका
मान्यवर!
आज जिस श्रीशैलपुरं तथा मुनिगिरि क्षेत्र का
दर्शन कर रहें है इसकी महत्ता नाम से ही विदित हो जाती
है। यानी पहाडों से धिरा हुआ क्षेत्र मुनियों के लिए
निवासस्थान माना जाता है। अलावा इसके एक ऐतिहासिक
घटना भी प्रसिद्ध है। यहाँ से थोडी दूर पर अविडदांगी
नामक एक गाँव है जहाँ पर हिमशीतल राजा राज्य करता
था। इसी राजा की सभा में परमपूज्य श्री अकलंकदेवने बौद्धों
को बाद में हराया था। इस बीच में एक बार मुनिगिरि में
प्रसिद्ध कृष्मांडिनी देवी का दर्शन कर जाने के बाद बाद में
उनकी जीत हुई आदि। जिसकी यादगारी में मन्दिर के पूरब
की दीवार पर श्री अकलंकदेवका चरण चिह्न भी अंकित हैं।
इसका तथ्य अकलंक स्तोत्र के राज्ञः श्रीहिमशीतलस्य
सदसि प्रायो विदग्धात्मनां, बौद्धधानिसकलान् विजित्य
सघट; पादेन विस्पालितः आदि पंक्ति से विदित हो जाता है।
ऐसे पवित्र क्षेंत्र में आपको स्वागत करते हुए हम
प्रफुल्ल्ति होते है। हमारा विश्वास है कि आप का यह आगमन
उत्तर भारतीय यात्रिकों के लिये मार्गदर्शक बनेगा। अन्त में
आपसे प्रार्थना है कि इस प्रकार बार–बार पधार कर क्षेत्र का
उद्धार करें।
ता। १४–३–१९५९ आपके आगमन से प्रफुल्लित
श्रीशैलपुंर तथा मुनिगिरि
निवासी समस्त श्रावक श्राविकायें