
शांतिनाथ भगवानना १६ फूट ऊंचा भव्य प्रतिमा शांत
मुद्रावंत बिराजे छे, तेना पूजन–भक्ति बाद रामटेक
तीर्थमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन.
वगर चार गतिमां फसायेला जीवोने आत्मबोध कराववा माटे तेमणे आ शास्त्रमां शुद्ध आत्मानुं स्वरूप
बताव्युं छे. निश्चय–व्यवहार बाबतमां तेओ कहे छे के अबुध–अज्ञानी प्राणीओने आत्मानुं स्वरूप
समजाववा माटे विकल्प ऊठतां हुं व्यवहारद्वारा तेनो उपदेश करी, अर्थात् उपदेशमां तो व्यवहारथी–
भेदथी कथन आवशे. परंतु निश्चयस्वरूपना आश्रये ज कर्मनो क्षय थाय छे, एटले निश्चयस्वरूपनुं
अवलंबन ज अमारे बताववुं छे, व्यवहारथी कथन आवे तेमां पण व्यवहारनुं अवलंबन कराववानो
अमारो आशय नथी, अमारो आशय तो शुद्ध नयनुं अवलंबन करावीने शुद्धात्मानो अनुभव कराववानुं
छे केमके तेना ज आश्रये कर्मक्षय थाय छे. कर्मनो क्षय कहो के आत्मशांतिनी प्राप्ति कहो, ते शुद्धात्माना
आश्रये ज थाय छे.
‘शांतिनाथ भगवान छे; तेना आश्रये अपूर्व शांतिनुं वेदन थाय छे. पोताना आत्मा सिवाय बीजा कोई
भगवान (सिद्ध–भगवान के अरिहंत भगवान) कांई जीवने दर्शन देवा अहीं आवता नथी. केमके
सिद्धभगवान तो शरीररहित थई गया, ने अरिहंत भगवान तो अत्यारे विदेहक्षेत्रे बिराजे छे, एटले
ते भगवंतो अहीं दर्शन देवा आवता नथी, पण तेमना जेवो जे पोतानो चैतन्यस्वभाव छे तेनुं भान
(सम्यग् दर्शन) करीने अने तेनी साधना करीने आ आत्मा पोते परमात्मा बनीने सिद्धालयमां जाय
छे. आत्मानी आवी प्रभुता आचार्य देव ओळखावे छे के हे जीवो! तमारामां तमारी प्रभुता रहेली छे;
पण तेनी सावधानी (विश्वास ने एकाग्रता) वगर जीव संसारमां भ्रमण करीने दुःखी थई रह्यो छे.
अंतरमां शुद्ध नयवडे आत्माना शुद्धस्वरूपने प्रतीतमां लेतां आत्मशांति प्राप्त थाय छे. बहारमां
शांतिनाथ भगवानना दर्शन–पूजन–भक्ति वगेरेनो भाव आवे, धर्मात्माने पण एवो भाव आवे, पण
ते शुभभाव छे, तेनी मर्यादा पुण्यबंधन कराववा पूरती ज छे, मोक्षनी प्राप्ति कराववी ते तेनी मर्यादानी
बहार छे, अर्थात् ते शुभरागवडे मोक्ष के आत्मशांति थती नथी. आत्मशांति अने मुक्ति तो शुद्धनयवडे
अंतर्मुख थईने शुद्धात्मानो अनुभव करवाथी ज थाय छे.