Atmadharma magazine - Ank 187
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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ः २८ः आत्मधर्मः १८७
जात्रानुं मंगळ कर्युं. त्यारबाद पू. बेनश्रीबेने “भारत भूमिना वासी जिनने वंदु वार हजार” ए प्रमाणे आखा
भारतना तीर्थोने याद करीने भक्ति करावी हती...त्यार बाद घोघामां चा–नास्तो करीने यात्रिको भावनगर
पाछा आव्या हता. बीजे दिवसे भावनगरथी सोनगढ तरफ प्रस्थान कर्युं हतुं.
तीर्थधाम सोनगढमां पू. गुरुदेवनुं
आगमन (वैशाख सुद १३)
सोनगढनी भूमि अनेकविध शणगारथी आजे शोभती हती.....आम्रवृक्षो अति प्रफूल्लित थईने, जाणे के
हाथमां केरी लईने झूकीझूकीने गुरुदेवनुं स्वागत करता हता, स्वाध्यायमंदिरना वृक्षो तो जाणे के शतशत
दीवडानी ज्योतिवडे गुरुदेवनुं सन्मान करता हता...रस्ताओ अनेक सुसज्जित मंडपो–कमानो अने ध्वज
तोरणथी शोभता हता...गामेगामना सेंकडो भक्तो अने सुवर्णपुरीना अनेक नगरजनो गुरुदेवना स्वागत माटे
खूब ज होंसपूर्वक आतुर हता...बेन्डवाजां मंगलनाद करीकरीने जाणे के ‘मंगलवर्द्धिनीने बोलावी रह्या हता......
आ बाजुं ‘मंगलवर्द्धिनी’ मोटर सोनगढ तरफ झडपथी आवी रही हती...गुरुदेवना हृदयमां
सीमंधरनाथने भेटवानी भावभीनी ऊर्मिओ जागती हती.....ने दूरदूरथी सोनगढना जिनधामोने नीहाळी रह्या
हता.....थोडीवारमां ‘मंगलवर्द्धिनी’ सोनगढ आवी पहोंची अने सा...रे...ग....म.ना मंगलसूरवडे जेवी गुरुदेव
पधार्यानी वधामणी आपी के तरत ज सेंकडो भक्तजनोए अति उमळकापूर्वक जयजयकारथी गुरुदेवनुं स्वागत
कर्युं.
आवतांवेत गुरुदेव सीमंधरप्रभुना दरबारमां पधार्या प्रभुना दर्शन करतां ज अंतरमां भक्तिनो स्रोत
वहेवा लाग्यो.......ने अति नम्रभावे नमन करीने थोडीवार सुधी प्रभुनी मुद्रा नीहाळी ज रह्या....पछी अर्घ
चडावीने भगवाननी पूजा करी...ने त्यांथी स्वाध्यायमंदिरमां आवीने बिराज्या...त्यां घणा भावपूर्वक अनेक
तीर्थधामोनुं स्मरण करीने शांतरसझरतुं मंगलप्रवचन कर्युं. बपोरे प्रवचनमां “समयसार”नी मंगल शरूआत
थई......त्यारबाद जिनमंदिरमां भक्ति प्रसंगे आ मंगलकारी तीर्थयात्रा महोत्सवनी पूर्णता प्रसंगनुं खूब ज
भाववाही स्तवन पू. बेनश्रीबेने गवडाव्युं......गुरुदेवनी साथे ने साथे आवी महान तीर्थयात्रा थई तेनी अपार
प्रसन्नता स्तवनना शब्दे शब्दमांथी झरती हती....सौ यात्रिकोना हृदय भक्ति अने हर्षथी गदगद हता.....भक्ति
पछी जिनेन्द्रभगवंतोना ने संतोना जयजयकारपूर्वक आ मंगलयात्रा समाप्त थई....भारतना अनेक
तीर्थधामोनी गुरुदेव साथेनी आ महान मंगलवर्द्धिनी यात्रा भव्य जीवोने मंगलनी वृद्धि करो.
“पू. श्री कानजीस्वामी दिगंबर जैन तीर्थयात्रा संघ”नुं वर्णन अहीं समाप्त थाय छे. यात्रामां आवेला
यात्रिकोने यात्राना उल्लासकारी प्रसंगो अने तीर्थधामोना स्मरणमां उपयोगी बने, तेम ज यात्रामां नहि आवी
शकेला भक्तोने पण तीर्थयात्रानो कांईक ख्याल आवे ते माटे यात्रानो संक्षिप्त अहेवाल अहीं रजू कर्यो छे. आ
तीर्थयात्राना मंगल प्रसंग दरमियान कोईपण पूज्य तीर्थ प्रत्ये के तीर्थस्वरूप संतो प्रत्ये, पू. गुरुदेव प्रत्ये के पू.
बेनश्री–बेन प्रत्ये कोई प्रकारे अविनयादि थई गया होय तो अंतःकरणनी भक्तिपूर्वक नम्रभावे हुं क्षमा मांगुं
छुं. यात्रा दरमियान परिचयमां आवेला देशोदेशना साधर्मी–भाई–बेनो प्रत्ये पण माराथी जे कांई दोष थई
गया होय ते बदल वात्सल्यपूर्वक सौ साधर्मी भाई–बेनो प्रत्ये क्षमा मांगु छुं.
भारतना महान तीर्थोनी आवी उल्लासभरी मंगल यात्रा थई ते बदल परमपूज्य गुरुदेवनो
आपणा उपर महान उपकार छे....संसारथी तरवा माटेनुं साचुं तीर्थ शुं छे–ते तेओश्रीज आपणने
समजावी रह्या छे....आ रीते सम्यक्तीर्थनी अपूर्वयात्रा करावीने मुक्तिपुरी सिद्धिधाम प्रत्ये लई जनार
परमपूज्य जीवनाधार गुरुदेवना पुनित चरणोमां परम भक्तिभावे नमस्कार करुं छुं.
–ब्र हरिलाल जैन