Atmadharma magazine - Ank 188
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 21

background image
प्रौढ वयना गृहस्थो माटे
जैन दर्शन शिक्षण वर्ग
सोनगढमां दर वर्षनी माफक आ वर्षे पण श्रावण सुद
पांचम ने रविवार ता. ९–८–प९ थी शरू करीने श्रावण वद दसम
ने शुक्रवार २८–८–प९ सुधी तत्त्वज्ञानना अभ्यास माटे “जैन
दर्शन शिक्षण वर्ग” चालशे. वर्गमां दाखल थनार गृहस्थो माटे
रहेवा–जमवानी व्यवस्था संस्था तरफथी थशे. जे जिज्ञासु
भाईओने वर्गमां आववानी ईच्छा होय तेमणे नीचेना सरनामे
सूचना मोकली देवी, अने वर्गमां वखतसर आवी जवुं.
–श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ (सौराष्ट्र)
वै रा ग्य स मा चा र
मुंबईमां ता. १७–६–प९ रोज संघवी दलीचंद हकुभाई
(मोरबीवाळा) ७८ वर्षनी वये हृदयरोगना हूमलाथी स्वर्गवास
पाम्या छे. तेओ छेल्ला अनेक वर्षोथी सोनगढ रहीने पू.
गुरुदेवना सत्समागमनो लाभ लेता हता, तेओ खूब उत्साही
अने तत्त्वप्रेमी हता. मोरबी मुमुक्षुमंडळना तेओ एक वडील
हता. ७८ वर्षनी वृध्धावस्था, नबळी तबीयत तेमज आंखनी
तकलीफ होवा छतां तेमनो उत्साह एवो ने एवो ज हतो, अने
चार दिवस पहेलां तो तेओ सोनगढ आववा माटे कहेता हता.
परंतु सोनगढ आवता पहेलां तेओ स्वर्गवास पामी
गया....संयोगनी आवी ज स्थिति छे, संयोगो जीवने आधीन
परिणमता नथी माटे जीवे संयोगाधीन वृत्ति छोडीने स्वभाव–
आधीन वृत्तिनो अभ्यास करवा जेवो छे. भाईश्री दलीचंदभाई
तत्त्वप्रेमवडे पोताना सुशिक्षित सुपुत्रोमां पण धर्मप्रेमना बीज
रोपता गया छे. आशा राखीए के तेमना सुपुत्रो ए बीजनुं
विशेष सींचन करीने, तेमना पिताजीए बतावेला धर्ममार्गमां
आवळ वधे; अने श्री दलीचंदभाईनो आत्मा तात्त्विक उल्लासमां
आगळ वधीने पोताना आत्महितने साधे.
आत्मार्थी जीवोए संसारनी आवी स्थिति जाणीने,
आगळ–पाछळनी सर्वे चिंताओ छोडी वर्तमान स्वसमयने
संभाळवा जेवुं छे.