Atmadharma magazine - Ank 189
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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कुंदकुंदप्रभुनी पावन तपोभूमि के ज्यांथी तेओश्रीए विदेहगमन कर्युं हतुं अने ज्यां तेओश्रीए शास्त्ररचना करी
हती..... ते पोन्नूर तीर्थनी यात्रा गुरुदेव साथे करतां भक्तोने केवो अपार उल्लास हतो तेनुं एक द्रश्य.
जेने आत्मानी खरी धगश जागे.......आत्मानी खरी
गरज थाय ते जीवनी दशा केवी होय? ते समजावतां एक वार पू.
गुरुदेवे कह्युं हतुं के–
आत्मार्थीने सम्यग्दर्शन पहेलां स्वभाव समजवा माटे
एटलो तीव्र रस होय के श्री गुरु पासेथी स्वभाव सांभळतां ज
ते ग्रहण थईने आत्मामां गरी जाय.......आत्मामां परिणमी
जाय........’ अहो! मारो आवो स्वभाव गुरुए बताव्यो’
.....एम गुरुनो उपदेश ठेठ आत्मामां स्पर्शी जाय.
जेम कोरा घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां ज ते चूसी ल्ये
छे, अथवा धगधगता लोढा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां ज ते चूसी
ल्ये छे, तेम दुःखथी अति संतप्त थयेला आत्मार्थी जीवने श्रीगुरु
पासेथी शांतिनो उपदेश मळतां ज ते तेने चूसी ल्ये छे एटले के
तरज ज ते उपदेशने पोताना आत्मामां परिणमावी घे छे.
आत्मार्थीने स्वभावनी जिज्ञासा अने झंखना एवी उग्र
होय के ‘स्वभाव’ सांभळतां तो हृदयमां सोंसरवट ऊतरी
जाय......अरे! ‘स्वभाव’ कहीने ज्ञानी शुं बताववा मांगे छे!–
एनुं ज मारे ग्रहण करवुं छे......आम रूंवाटे रूंवाटे स्वभाव
प्रत्येनो उत्साह जागे ने वीर्यनो वेग स्वभाव तरफ वळी जाय.
एवो पुरुषार्थ जागे के स्वभाव प्राप्त कर्ये ज छूटको.....स्वभाव
प्राप्ति न थाय त्यां सुधी तेने चेन न पडे.
–आवी दशा थाय त्यारे आत्मानी खरी धगश
कहेवाय.