Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

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बंध–मोक्षनो टूंको सिद्धांत
(प्रवचनसार गा. १८९ थी १९१ ना प्रवचनो उपरथी)
(१) प्रश्नः– बंधननो टूंको सिद्धांत शुं छे?
उतरः– मोह–राग–द्वेषभावथी जीव एकलो ज बंधाय छे–आ प्रमाणे बंधनो टूंको सिद्धांत अर्हंतदेवे कह्यो छे.
(२) प्रश्नः– अर्हंतदेवे आम कह्युं छे–ए वातनी कुंदकुंदाचार्यने क्यांथी खबर पडी?
उत्तरः– महाविदेहमां अत्यारे सीमंधर परमात्मा बिराजे छे त्यां जईने कुंदकुंदाचार्यदेवे सर्वज्ञपरमात्मानी
वाणीमां साक्षात् सांभळ्‌युं; तेमज गुरुपरंपराथी पण तेमने घणुं ज्ञान मळ्‌युं हतुं; तेमने पोताना स्वानुभवथी
पण तेमना ज्ञानमां घणी निर्मळता थई हती.
(३) प्रश्नः– आत्मा शेनावडे बंधायेलो छे?
उत्तरः– निश्चयथी मोह–राग–द्वेषरूपे पोताना भावबंधवडे ज आत्मा बंधायेलो छे. ज्यां आवुं निश्चय
बंधन छे त्यां निमित्त तरीके कर्मनुं बंधन छे ते व्यवहार छे.
(४) प्रश्नः– कर्मने लीधे आत्माने भावबंध छे ए वात साची?
उत्तरः– ना; ए वात विपरीत छे. जो कर्मने लीधे भावबंध थया ज करे तो तो आत्मा खरेखर पराधीन
थई गयो, बंधनथी छूटवानो कोई अवसर ज तेने न रह्यो.
(प) प्रश्नः– तो खरेखर जीवने बंधन कई रीते छे?
उत्तरः– खरेखर जीवने पोताना मोह–राग–द्वेष भावथी ज बंधन छे. जे जीव पोते पोताना अपराधथी
मोह–राग–द्वेषरूपे परिणमे छे ते ज बंधाय छे; जे जीव–मोह–राग–द्वेष नथी करतो ते जीव बंधातो नथी. कर्म तो
बीजी चीज छे. तेनुं बंधन आत्माने कहेवुं ते तो व्यवहारथी छे.
(६) प्रश्नः– भावबंधनो कर्ता द्रव्यकर्म ज छे के बीजो कोई?
उत्तरः– भावबंधनो कर्ता द्रव्यकर्म नथी, पण मोह–राग–द्वेषरूपे परिणमतो जीव पोते ज पोताना भावबंधनो
कर्ता छे. जीव पोते एकलो ज पोताना बंध के मोक्षनो कर्ता छे, बीजो कोई तेना बंध के मोक्षनो कर्ता नथी.
(७) प्रश्नः– निश्चयनये आत्मा पोताना बंध–मोक्षनो कर्तां छे एम कह्युं, अने व्यवहारनये आत्मा
कर्मना बंधमोक्षनो कर्ता छे–एम कह्युं, तो आ बे नयोमांथी अहीं क्यो नय ग्रहण करवो?
उत्तरः– अहीं निश्चयनय साधकतम होवाथी ते ग्रहण करवामां आव्यो छे. व्यवहारनय तो पर साथे संबंध
बतावतो होवाथी तेना ग्रहणवडे परथी भिन्न आत्मानुं ग्रहण थतुं नथी; अने निश्चयनय आत्माने परना संबंध
वगरनो बतावतो होवाथी तेना ग्रहणवडे परथी भिन्न आत्मानुं ग्रहण थाय छे, माटे निश्चयनय ग्रहण करवो.
(८) प्रश्नः– अहीं निश्चयनयने साधकतम कह्यो, तो तेनुं साध्य शुं छे?
उत्तरः– परद्रव्योथी आत्माने भिन्न जाणवो ते अहीं साध्य छे. आत्माने समस्त परद्रव्योथी भिन्न
जाणतां, स्वद्रव्यनी सन्मुखताथी शुद्धतानी प्राप्ति छे.
(९) प्रश्नः– जे जीव व्यवहारने ज ग्रहण करे छे तेने शुं थाय छे?
उत्तरः– व्यवहारनय आत्माने पर साथे संबंधवाळो बतावे छे, तेथी व्यवहारनयने ज ग्रहण करे छे तेने
पर साथे संबंधवाळा अशुद्ध आत्मानुं ज ग्रहण थाय छे, पण परथी भिन्न शुद्ध आत्मानुं ग्रहण तेने थतुं नथी.
एटले व्यवहारनयनुं ज जे ग्रहण करे छे तेने परप्रत्ये मोह ऊपजे छे.
(१०) प्रश्नः– निश्चयनय अनुसार परथी भिन्न आत्माने जे जाणतो नथी ने व्यवहारनयने पकडीने
आत्माने पर साथे संबंधवाळो ज माने छे ते जीव केवो छे?
उत्तरः– आचार्यदेव कहे छे के ते जीव परद्रव्यमां ममत्ववाळो छे, अने ते अशुद्ध आत्मपरिणतिरूप
उन्मार्गनो ज आश्रय करे छे. ते परथी भिन्न शुद्ध आत्माने प्राप्त नथी करतो, पण पर साथे संबंधवाळा अशुद्ध
आत्माने ज प्राप्त करे छे.
(११) प्रश्नः– तो शुद्ध आत्मानी प्राप्ति कई रीते थाय छे?
उत्तरः– ‘हुं परनो नथी, पर मारां नथी, हुं एक ज्ञान छुं–एम निर्णय करीने जे जीव परथी भिन्न
आत्माने ध्यावे छे तेने शुद्धात्मानी प्राप्ति एटले के अनुभव थाय छे. अने ए रीते शुद्धात्माने अनुभवतो थको
ते जीव अल्पकाळे मुक्ति पामे छे.