Atmadharma magazine - Ank 190
(Year 16 - Vir Nirvana Samvat 2485, A.D. 1959)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 21

background image
ः ६ः आत्मधर्मः १९०
सिद्धपदनी अपूर्व शांति
द क्षि ण या त्रा द र मि या न
खेरागढमां शांतिनाथ प्रभुनी वेदीप्रतिष्ठा प्रसंगे
पू. गुरुदेवनुं प्रवचनः ता. ९–४–प९
जे जीव आत्मार्थी होय तेने
चैतन्यसुखनो रंग लागे, ने बाह्य
विषयोनो रंग उडी जाय. जेने
चैतन्यसुखनो रंग नथी ने विषयोना
सुखमां जे रंगायेलो छे, एवा जीवने
आत्मज्ञाननी पात्रता नथी. माटे पहेलां
सत्समागमे चैतन्यसुखनो रंग लगाडवो
अने विषयसुखोनी रुचि छोडी देवी ते
पात्रता छे. आवी पात्रतावाळो जीव
अवश्य सिद्धपदनी अपूर्व शांति पामे छे.
जंगलमां वसनारा पद्मनंदीमुनिराज, तेमणे पोताना आत्मानुं हित तो साध्युं हतुं ने जगतना
प्राणीओनुं हित केम थाय तेनो उपाय बताववा माटे आ शास्त्र रच्युं छे. सूर्यनां किरणो पण जे अज्ञान–
अंधकारनो नाश करी शकता नथी तेनो नाश ज्ञानी–संतमुनिओना वचनोवडे थई जाय छे. श्री मुनिराज
कहे छे केः अरे जीवो! तमारो चैतन्यस्वभाव ज सुखथी भरेलो छे, तेने भूलीने अने विषयोमां सुख
मानीने अनंतकाळथी आत्मा दुःख भोगवी रह्यो छे. आ संसारमां जन्म–मरण–रोग संबंधी जे दुःख छे
तेनी वात तो दूर रहो, परंतु संसारना विषयो संबंधी जे सुख छे ते पण खरेखर दुःख ज छे.
चैतन्यस्वभावथी बाह्य विषयोमां वृत्तिनुं भ्रमण ते दुःख छे. शांति तो चैतन्यस्वभावमां छे, तेनी
सन्मुखताथी ज साची शांति थाय छे.
जुओ, अहीं दिगंबर जिनमंदिरमां शांतिनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा थाय छे, तेमां आत्मानी शांति केम
पमाय–तेनी आ वात छे. अनंतकाळना परिभ्रमणना प्रवाहमां जीवे चैतन्यनी साची शांतिनो अनुभव
क्षणमात्र कर्यो नथी, अनुकूळ विषयोमां सुखनी कल्पना करी छे, पण ते खरेखर सुख नथी. संपूर्ण सुख अने
शांति मोक्षमां छे, अने ते मोक्षनो उपाय चैतन्यस्वरूपमां छे, चैतन्य स्वरूपथी बाह्य कोई विषयोमां सुख के
मोक्षमार्ग नथी. चैतन्यना अतीन्द्रिय सुखने अनुभवनारा वनवासी संत कहे छे के अरे प्राणीओ! विषयोमां
कल्पेलुं जे सुख छे ते सुख नथी पण दुःख ज छे. चक्रवर्तीना वैभवमां के ईंद्रपदना वैभवमां पण किंचित् सुख
नथी. सुख तो अतीन्द्रिय चैतन्यमां छे.
अतीन्द्रिय स्वरूपमां सुख छे ते समज्या विना जीव अनंतकाळथी दुःख पाम्यो छे; श्री गुरु तेने तेनुं