विषयोनो रंग उडी जाय. जेने
चैतन्यसुखनो रंग नथी ने विषयोना
सुखमां जे रंगायेलो छे, एवा जीवने
आत्मज्ञाननी पात्रता नथी. माटे पहेलां
सत्समागमे चैतन्यसुखनो रंग लगाडवो
अने विषयसुखोनी रुचि छोडी देवी ते
पात्रता छे. आवी पात्रतावाळो जीव
अवश्य सिद्धपदनी अपूर्व शांति पामे छे.
अंधकारनो नाश करी शकता नथी तेनो नाश ज्ञानी–संतमुनिओना वचनोवडे थई जाय छे. श्री मुनिराज
कहे छे केः अरे जीवो! तमारो चैतन्यस्वभाव ज सुखथी भरेलो छे, तेने भूलीने अने विषयोमां सुख
मानीने अनंतकाळथी आत्मा दुःख भोगवी रह्यो छे. आ संसारमां जन्म–मरण–रोग संबंधी जे दुःख छे
तेनी वात तो दूर रहो, परंतु संसारना विषयो संबंधी जे सुख छे ते पण खरेखर दुःख ज छे.
चैतन्यस्वभावथी बाह्य विषयोमां वृत्तिनुं भ्रमण ते दुःख छे. शांति तो चैतन्यस्वभावमां छे, तेनी
सन्मुखताथी ज साची शांति थाय छे.
क्षणमात्र कर्यो नथी, अनुकूळ विषयोमां सुखनी कल्पना करी छे, पण ते खरेखर सुख नथी. संपूर्ण सुख अने
शांति मोक्षमां छे, अने ते मोक्षनो उपाय चैतन्यस्वरूपमां छे, चैतन्य स्वरूपथी बाह्य कोई विषयोमां सुख के
मोक्षमार्ग नथी. चैतन्यना अतीन्द्रिय सुखने अनुभवनारा वनवासी संत कहे छे के अरे प्राणीओ! विषयोमां
कल्पेलुं जे सुख छे ते सुख नथी पण दुःख ज छे. चक्रवर्तीना वैभवमां के ईंद्रपदना वैभवमां पण किंचित् सुख
नथी. सुख तो अतीन्द्रिय चैतन्यमां छे.